पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३८०

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एकोनपञ्चाशत्तमोऽध्यायः

३६१ तमसोऽन्ते च विख्यातमाकाशान्ते च भास्वरम् । मर्यादयाम्झतस्तस्य शिवस्याऽऽयतनं महत् ॥१६०

त्रिदशानामगम्यं तु स्थानं दिव्यमिति श्रुतिः। महतो देवदेवस्य मर्यादयां व्यवस्थितम् १६१

चन्द्रादित्याबतप्तास्तु ये लोकाः प्रथिता बुधैः। ते लोका इत्यभिहिता जगतश्व न संशयः ।।१६२
रसातलतलात्सप्त सप्तैवोर्वतलाः क्षितौ । सप्त स्कन्धास्तथा वायोः सब्रह्मसदा द्विजः ॥१६३
आपातालाद्दिवं यावदत्र पञ्चविधा गतिः । प्रमाणमेतज्जगत एष संसारसागरः १६४
अनाद्यन्ता प्रयात्येवं नैकजातिसमुद्भवा। विचित्रा जगतः सा वै प्रवृत्तिरनवस्थिता ॥१६५
यथैतद्भौतिकं नाम निसर्गबहुविस्तरम् । अतीन्द्रियैर्महाभागैः सिद्धेरपि न लक्ष्यते १६६
पृथिव्यां चाग्निवायूनां महतस्तमसस्तथा । ईश्वरस्य तु देवस्य अनन्तस्य द्विजोत्तमाः ॥१६७
क्षयो व परिमाणे व अन्तो वाऽपि न विद्यते । अनन्त एष सर्वत्र सर्वस्थानेषु पठ्यते । तस्य चोक्तं मया पूर्वे तस्मिन्नसानुकीर्तने १६८
य एष शिवनाम्ना हि तद्वः कात्स्थैन कीfततम् । स एष सर्वत्र गतः सर्वस्थानेषु पूज्यते ॥१६६
भूमौ रसातले चैव आकाशे पवनेऽनले। अर्णवेषु स सर्वेषु दिवि चैव न संशयः १७०
अविदित और व्यवहाररहित ।१५६१५९। अन्धकार के अन्त में और आकाश के शेष भाग में अर्थात् सीमा प्रान्त में शिव का एक देदीप्यमानविख्यात आयतन या मन्दिर है । वह दिव्य स्थान है, जहाँ देवगण भी नही जा सकते हैं । देवाधिदेव महदेव के आयतन की सीमा में चन्द्र-सूर्य की किरण से प्रतप्त जो लोक है, उन्हें पण्डित लोग जागतिक लोक कहते है ।१६०-१६ । द्विजगण ! पृथ्वी मे रसातल के ऊपर या नीचे सातसात लोक है । ब्रह्मसदन पर्यंत वायु के सात स्कन्ध है । वहाँ पाताल से लेकर स्वर्गपर्यन्त वायु की गति पाँच प्रकार की है । यही जगत् का प्रमाण है और यही संसारसागर कहलाता है। अनेक जातियों की उद्भव-भूमि यह अनादिअनन्त जगत्परम्परा इसी प्रकार चलती रहती है । जगत की यह अस्थिर प्रवृत्ति सचमुच विचित्र है । इसकी भौतिक सृष्टि का अत्यधिक विस्तार है, जिसे अतीन्द्रिय महाभाग सिद्धगण भी नही जान सकते है |१६३१६६। इस जगत् में अग्नि, वायु, महान्, तमईश्वर और देव अनन्त का क्षय, परिणाम या अन्त नही होता है । ये सभी स्थानो मे अनन्त नाम से अभिहित है । नामो के नर्णन प्रसङ्ग मे हमने पहले ही इस सम्बन्ध में कह दिया है ।१६७ १६८। जो शिव नाम से प्रसिद्ध है. उनके नामानुकीर्तन प्रसङ्ग में हमने विस्तार के साथ कह दिया है । ये ही सवंगामं है और सभी स्थानो मे अर्थात् भूमि, रसातल आकांश. पवन, अग्नि, समुद्र और स्वर्ग मे पूजित होते है, इसमे वुछ म राय नही है । ऐसा जाना o--४६