पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३५४

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|प्तचत्वारिशोऽध्यायः ॥४ तस्माद्दिव्या प्रभवत नदी मन्दाकिनी शुभा । दिव्यं च नन्दनं तत्र तस्यास्तीरे महद्वनम् ३ प्रागुत्तरेण कैलासाद्दिव्यसत्त्वौषधं गिरिम् । सुरधातुमयं चित्रं सुवर्ण पर्वतं प्रति चन्द्रप्रभो नाम गिरिः स शुद्धो रत्नसंनिभः । तस्य पादे सहद्दिव्यमच्छोदं नाम तत्सरः ५ तस्माद्दिव्या प्रभवति ह्याच्छोदा नाम निम्नगा । तस्यास्तीरे महद्दिव्यं वनं चैत्ररथं स्मृतम् ॥६ तस्मिन्गिरौ निवसति मणिभद्रः सहानुगः । यक्षसेनापतिः कूरगुह्यकैः परिवारितः ७ पुण्या मन्दाकिनी चैव निम्नगाच्छदिका तथा । सहीमण्डलमध्येन प्रविष्टे ते महोदधिम् ॥८ कैलासाद्दक्षिणस्राच्यां शिवसत्त्वौषधि गुरुम् । मनःशिलामयं दिव्यं पिशङ्ग' पर्वतं प्रति । लोहितो हेमशृङ्गस्तु गिरिः सूर्यप्रभो महान् । तस्य पदे महद्दिव्यं लोहितं नाम तत्सरः १० तस्मात्पुण्यः प्रभवति लौहित्यः सदनो महान् । देवारण्यं विशोकं च तस्य तीरे महावनम् ॥११ तस्मिन्गिरौ निवसति यथा मणिवरो वशी । सौम्यैः सुधमकैश्चैव गुह्यकैः परिवारितः १२ कैलासाद्दक्षिणे पाश्र्वे क्रूरसत्त्वौषधं गिरिम् । वृत्रकायात्किलोत्पन्नमञ्जनं त्रिककुं प्रति १३ सर्वधातुमयस्तत्र सुमहान्वैद्युतो गिरिः। तस्य पादे सरः पुण्यं मनसं सिद्धसेवितम् १४ और शुभावह मन्दाकिनी नाम की नदी उत्पन्न होती है । उसी के किनारे नन्दन नाम का एक दिव्य महावन है ।३। केलाश के पूर्व-उत्तर और दिव्य सत्त्व और औषधियों से युक्त, देवोचित धातुओं से मण्डित और विचित्र सुवर्ण पर्वत के पास शुद्धरन के तुल्य चन्द्रप्रभ नाम का एक पर्वत है। उसी के मूलदेण में अच्छोद नाम का सरोवर है ।४-५। जिस सरोवर से आच्छोदा नाम की नदी निकलती है । इस आच्छोद के तीर पर एक चैत्ररथ नाम का महादिव्य वन है। उस चन्द्रप्रभ पर्वत पर यक्ष सेनापति मणिभद्र अपने अनुचरों के साथ निवास करते हैं । वहाँ क्रूर प्रकृति गुह्यक भी उसके परिवार की भाँति रहते हैं । पवित्र मन्दाकिनी और अच्छोदा नाम की नदी महीमडल के बीच से बहती हुई महासमुद्र में प्रविष्ट हुई है ।६-८। कैलाषा के दक्षिण पश्चिम शिवभक्त जीवों और औषधियो से युक्त, मनःशिलामण्डित एवं विशाल और दिव्य जो पिशङ्गपर्वत है, उसके आसपास सुवर्णशृङ्ग से युक्त रक्तवर्ण का सुयंप्रभ नामक एक महान् पर्वत है । उसी के मूलदेश में लोहित नामक महादिव्य सरोवर है ।६-१०। इसी सरोवर से लहित नामक एक पुण्यशीलमहानद प्रवाहित हुआ है। उसी के तट पर विशोक नामक एक महवन है, जो देवों का लीलावन है । उसी पर्वत पर जितेन्द्रिय मणिवर नामक कोई नामक कोई यक्ष निवास करता है, जो शान्त घर्मिक गुह्यकों से पारिवारिक सद्भाव रखता है ॥१११२कैलास के दक्षिण भाग में कूर जीव और औषधों से युक्त एवं तीन शिखरवाले वृत्रासुर की देह से उत्पन्न अंजनाचल के समीप सर्वधातु संपन्न वैद्युत नामक एक महान् पर्वत है, जिसके मूलदेश में सिद्ध सेवित और पवित्र मानस नाम का सरोवर है ।१३-१४इससे लोकपावनी पवित्र सरयू प्रवाहित होती है,