पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३५३

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0 ३३४ ३६ नवस्वेतेषु वर्षेषु यथाभागस्थितेषु वै। भूतान्युपविष्टानि गतिमन्ति ध्रुवाणि च तेषां विवृद्धिर्बहुला दृश्यते देवमानुषी । न शक्या परिसंख्यातुं श्रद्धेयानुबुभूषता ३७ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते भुवनविन्यासो नाम षट्चत्वारिंशोऽध्यायः।।४६। अथ सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः भवनविन्यासः - सत उव सव्ये हिमवतः पाश्र्वे कैलासो नाम पर्वतः । तस्मिन्निवसति श्रीमान्कुबेरः सह राक्षसैः । अप्सरोगणसंयुक्तो मोदते ह्यलकाधिपः कैलासपादात्संभूतं पुण्यं शीतजलं शुभम् । मन्दं नाम्ना कुमुद्वन्तं शरदम्बुदसंनिभम् ॥१ २ विभागक्रम से अवस्थित इन नवों देशों में गतिशील भूतगण निरय निवास करते है । इन भूतों को वृद्धि देव मानुष के रूप में अघिकतर देखी जाती है । विशप अनुसंधान करते पर भी उनकी गणना नही की जा सकती है ।३५-३७॥ श्री वायुमहापुराण का भुवनविन्यास नामक छियालीसवाँ अध्याय समाप्त ॥४६॥ अध्याय ४७ सूतजी बोले—हिमालय के वाम पाश्र्व मे कैलास नामक पर्वत है। वहाँ श्रीमान् कुबेर राक्षसों के साथ निवास करते हैं । अलकाधिपति वहाँ अप्सराओं के साथ आमोद किया करते है ।१। कैलास पर्वत के पाद देश से शरत्कालीन भेष के समान पवित्र, सुखद शीतल कुमुदों से युक्त मन्द नामक जल उत्पन्न होता है ।२॥ उससे दिव्य