पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३१८

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एकचत्वारिंशोऽध्यायाः २६६ यत्र ताः संमुदा युक्ता नानाभूतगणैर्युताः । चित्रपुष्पफलोपेता रुद्रस्याऽऽक्रीडभूमयः ३३ हृष्ट गिरिदरोधासाः कृशोदर्यो मनोरमाः । सुन्दय यत्र किंनर्यो रमन्ते स्म सुचोचनाः ३४ विशालाक्षास्तथा यक्ष अन्याश्वप्सरसां गणाः । गन्धर्वाश्वङ्गशालिन्यो यत्र तत्र मुदा युताः ॥३५ तत्रैवोमावनं नाम सर्वलोकेषु विश्रुतम् । अर्धनारीनरं रूपं धृतवान्यत्र शंकरः ३६ तथा शरवणं न न यत्र जातः षडाननः। यत्र चैव कृतोत्सहः क्रौवशैलवनं प्रति ३७ ध्वजापताकिनं चैव किङ्किणीजालमालिनम् । यत्र सिहरथं युक्तं कातकेयस्य धीमतः ३८ चित्रपुष्पनिकुञ्जस्य नौधस्य च गिरेस्तटे । देवरिस्कन्दनः स्कन्दो यत्र शक्ति विमुक्तवान् ।३e यत्राभिषिक्तश्च गुहः सेन्द्रोपेन्दैः सुरोत्तमैः । सेनापत्ये च दैत्यारिद्वदशार्कप्रतापवान् भूतसंघावकीर्णानि एतान्यन्यानि च द्विजाः। तत्र तत्र कुमारस्य स्थानान्यायतनानि च ४१ तथा पाण्डुशिला नाम ह्याक्रीडा क्रौधघातिनः। नानाभूतगणाकीर्णं पृष्ठे हिमवतः शुभे तस्य पूर्वे तटे रम्ये सिद्धवसमुदाहृतम् । कलापग्राममस्येवं नास्नाऽऽख्यातं मनीषिभिः ४३ मृकण्डस्य वसिष्ठस्य भरतस्य नलस्य च । विश्वामित्रस्य विप्रस्तथैवोद्दालकस्य च अन्येषां चोग्रतपसामृषीणां भावितात्मनाम् । हिमवरयाश्रमाणां च सहस्राणि शतानि च ॥४५ ४० ॥४२ ४४ कड़ा भूमि है, वह विविध भूतगणों से युक्त विचित्र पुष्प-फल-सम्पन्न और आनन्दमय है । इस शीलदेश में गिरि गुहानिवासिनी मनोहारिणी, प्रसन्नवदना, सुनयना, कृशोदरी, सुन्दरी किन्नरियाँ सदा रमण किया करती है ।३३-३४। जहाँ विशालाक्ष यक्ष, सुन्दर गन्धर्व और अन्यान्य अप्सराएँ सदा आनन्द मनाती रहती है । वही सब लोगों में विख्यात उमावन है । जहां भगवान् शङ्कर ने आधे शरीर से नर ओर आधे से नारी का रूप धारण किया था । वही श वन भी है, जहाँ कतिलैय उरपन्न हुए । यही रहकर उन्होने कोच शैलवन को विदारण करने के लिये उत्साह प्रकट किया था ।३५३७1 श्रीमान् कतकेय का इसी स्थान पर एक सिहरथ है, जो ध्वजापताका से युक्त और किकिणी जाल से सुशोभित है। चित्र विचित्र पुष्प कूजों से युक्त शौच पर्वत प्रान्त में देवशत्रुओं के संहारकत्त काfतकेय ने यही अपनी शक्ति छोड़ी थी । यही पर इन्द्रादि श्रेष्ठ देवों के सेनापति वनाये गये थे और उनका अभिषेक हुआ था । वे बारह सूर्य की तरह देदीप्यमान थे ।३८-४०। ब्रह्मणो ! भूत-यूथों से व्याप्त यह कfतकेय के कितने ही स्थान और भवन है । हिमालय के मनोहर पृष्ठ भाग मे जो नाना भूतों से संकुल है कुमार कतकेय की पाण्डु शिला नामक एक क्रीड़ाभूमि है। उसके रमणीय पूर्वीय प्रान्त में सिद्धों का निवासस्थान कहा गया है, जिसका नाम विद्वानो ने कलापग्राम रखा है ।४१-४३। मृकंड़, वसिष्ठ, भरत, नल, विश्वामित्र, उद्दालक आदि विप्रषियों के तथा कठोर तपस्या करने वाले कितने ही पवित्रारमा ऋषियो के संकड़ों हजारो आश्रम है वहाँ बहुतेरे सिद्धों के आवासस्थान और आयतन है । यज्ञ उस हिमालय पर ।