पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३१७

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

२६८ वायुपुराणम् २१ २२ २३ २४ २५ २६ सुबाहुहरिकेशाद्याश्चित्रसेनजरादयः । दश गन्धर्वराजानो दीप्तवह्निपराक्रमाः तस्यैव पश्चिमे कूटे कुन्देन्दुसदृशप्रभे । नानाधातुशतैश्चित्रैः सिद्धदेवीषसेविते अशीतियोजनायामं चत्वारिंशत्प्रविस्तरम् । एकैकयक्षभदनं महाभवनमालिनम् महायक्षालयान्यत्र त्रिशदाढयनि मे शृणु । मुदाऽथ परमद्धर्या च संयुक्तानि समन्ततः सहस्रलिसुनेत्राद्यास्तथा मणिधरादयः । उदीर्णा यमराजानस्तत्र त्रिशत्सदा बभुः इत्येते कथित यो वाय्वग्निसमतेजसः। येषमधिपतिर्देवः श्रीमान्वैश्रवणः प्रभुः तस्यैव दक्षिणे पाश्र्वे हिमवत्यचलोत्तमे। निकुञ्जनिर्भरगुहानैकसानुदरीतटे अर्णवर्णवं यावत्पूर्वपश्वायतेऽचले । किंनराणां पुरशतं निविष्टं वै क्वचित्क्वचित् नैकशृङ्गकलापस्य शैलराजस्य कुक्षिषु । नरनारीप्रमुदितं हृष्टपुष्टजनाकुलस् द्रुमसुग्रोवसैन्याद्या भगदत्तपुरःसराः । तत्र राजशतं तेषां दीप्तानां बलशालिनम् विवाहो यत्र रुद्रस्य महादेव्योमया सह । तपस्तप्तवती चैव यत्र देवी वराङ्गना किरातरूपिणा चैव तत्र रुद्रेण क्रीडितम् । यत्र चैव कृतं ताभ्यां जम्बूद्वीपावलोकनम् २७ ।२८ ॥२ ३० ३१ ३२ तेजस्वी, पराक्रमी सुबाहु हरि केश, चित्रसेन और जर आदि दस गन्धर्व । राज वहाँ के अधिपति हैं ।१८२१। इस शैल के सिद्ध तथा सुरसेवित शतशत धातुरंजित कुन्द तथा इन्दु तुल्य शुध्रकान्तिमय पश्चिम शृङ्ग पर अलग अलग यक्ष के भवन बने हैं। वह स्थान अस्सी योजन लम्बा ओर तीस योजन चौडा है। वहाँ कितने बड़े-बड़े भवन है ।२२-२३। सुनिये, यह महाशयों के ऋद्धि-सम्पन्न तीस भवन है । उन भवनों में सदा आनन्द की धारा वहनी रहती है । महामाली, सुनेत्र और मणिवर आदि तीस यक्षराज वहाँ के उदार प्रभु है । वायु और अग्नि के समान तेजस्वी उपर्युक्त यज्ञों के अघिपति श्रीमान् वैश्रवण हैं ।२४२६। उसी कैलास के दक्षिण पाश्वं मे नगाधिराज हिमालय स्थित है । जिसमें कितने ही कृज है । झरनों और गुफाओं की भी गिनती नही है । चोटियाँ, दरें और मैदान भी अनगिनत है । यह हिमालय पूर्वीय समुद्र से लेकर पश्चिमीय समुद्र तक फैला हुआ है । इसके किसी किसी स्थान पर किन्नरों के नगर बसे हुए है, जो गिनती में सौ के लगभग है। अनगिनत शिखरों वाले शैलाधिराज हिमालय के मध्य-उदर में ये सब नगर विराजमान है, जहाँ के स्त्री पुरुष सदा प्रसन्न ओर प्रजा हृष्ट पुष्ट रहती है 1२७२८ , सुग्रीव, संन्य और भगदत्त प्रमुख सौ राजा उन बलशाली तेजस्वी किन्नरों के अधिपति है । इसी पर्वत पर महादेव रुद्र का उम। के साथ व्याह हुआ था । वराङ्गना उभा देवी ने यह कठोर तप किया था । किरात के वेश में महादेव ने यही क्रीड़ा की थी । इसी पर्बत पर से महादेव और पार्वती ने समस्त जम्बूद्वीप का अवलोकन किया था ।३०-३२। वहाँ जो रुद्र देव की