पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३१२

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

चत्वारशोऽध्यायः २६३ अथ चत्वारिंशोऽध्यायः धुवनविन्यासः त उदच १ मर्यादापर्वते शुभ्र देवकूटे निबोधत । विस्तीर्णे शिखरे तस्य कूटे मिरिवरस्य ह। ।२ समन्ताद्योजनशतं महाभवन्मण्डितम् । जन्मक्षेत्रं सुपर्णस्य वैनतेयस्य धीमतः ३ नैकैर्महापक्षिगणैर्गारुडैः शीघ्रविक्रमैः। संपूर्णबोर्यसंपन्नैर्वसनैरुरगारिभिः ४ पक्षिराजस्य भवनं प्रथमं तन्महात्मनः । महावयुप्रवेगस्य शाल्मलिद्वीपवासिनः ५ तस्यैव चारुमूर्वस्तु कूटेषु च सहधषु। दक्षिणेषु विचित्रेषु सप्तस्वपि तु शोभिनः [*संध्याभ्राभाः समुदिता रुक्नप्राकारतोरणाः । महाभवनमालाभिः शोभिता देवनिमताः ॥६ ७ त्रिंशद्योजनविस्तीर्णाश्चाशत्तमायतः । सप्त गन्धर्वनगरा नरनारीसमाकुलाः आग्नेया नाम गन्धर्वा महाबलपराक्रमाः । कुबेरानुचरा दीप्तास्तेषां ते भवनोत्तमाः। ८ अध्याय ४० सूतजी बोले-श्वेतवर्ण के देवकूट नामक मर्यादा पर्वत के विस्तृत शिखर पर श्रीमान् विनतानन्दन सुपर्ण का स्थान है ।१। वह जन्म-क्षेत्र चारों ओर से सौ योजन के विस्तार में है जहाँ अनेक विशाल भवन वने हुये है.। शाल्मलिद्वीप में निवास करनेवाले, वायु की तरह महावेगशाली महात्मा पक्षिराज गरुड़ का वही प्रथम भवन शीघ्रगामी अनेकानेक गरुड़ के वंशज विशाल पक्षिगण निवास करते हैं, जहाँ महाबली, सर्पनिहंता है।२-। सुग्दर शिखयुक्त उस पर्वतराज की दक्षिण दिशा में विचित्र प्रकार के सात भृङ्ग हैं, जिन पर सध्या कालीन मेघ की तरह देवों द्वारा बनाये गये कितने ही बड़े-बड़े भव्य भवन है जो सोने के प्राकार- तोरण से सुशोभित है। चालीस योजन लम्बे और तीस योजन चौड़े वहाँ गन्धर्वो के सात नगर हैं, जिनमें स्त्री-निवास पुरुष करते है |५-७। आग्नेय नामक महवली और पराक्रमी कुबेर के अनुचर गन्धर्वगण उन ।

  • धनुश्चिह्नसर्गतग्रन्थः ग. पुस्तके नास्ति ।