पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३१०

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एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः २६१ ४४ ४५ ४७ करञ्जेऽभिरतो नित्यं साक्षाद्भूतपतिः प्रभुः। वृषभा महादेवः शंकरो योगिनां प्रभुः ॥४२ नानावेषधरैर्भूतैः प्रमथैश्च दुरासदैः । करञ्जे सानवः सर्वे ह्यवकीर्णाः समन्ततः ४३ वसुधारे वसुमतः वसूनाममितौजसाम् । अष्टावायतनान्याहुः पूजितानि महात्मनाम् रत्नधातौ गिरिवरे सप्तर्षीणां महात्मनाम् ।सप्ताश्रमाणि पुष्यानि सिद्धवासयुतानि च महाप्रजापतेः स्थानं हेमशूलं नगोतमे । चतुर्वक्त्रस्य देवस्य सर्वभूतनमस्कृतम् ।।४६ गजशैले भगवतो नानाभूतगणावृताः । रुद्राः प्रमुदिता नित्यं सर्वभूतनमस्कृताः सुमेधे धातुचित्राङय शैलेन्द्रं मेघसंनिभे । नैकोदरदरीवप्रनिकुञ्जैश्चोपशोभिते आदित्यानां वसूनां च रणां वमितौजसाम् । तत्राऽऽयतनविन्यास रम्याश्चैवश्विनोरपि ॥४६ स्थानानि सिद्धेर्देवानां स्थापितानि नगोतमे । तत्र पूजापरा नित्यं यक्षगन्धर्वोकनराः ५० गन्धर्वनगरी स्फीता हेमकक्षे नगोत्तमे । अशषसरपुर्याभा महस्राकारतोरण ५१ सिद्धा ह्यपत्तना नाम गन्धर्वा युद्धशालिनः । येषामधिपतिर्देवो राजराजः कपिञ्जलः ।।५२ अनले राक्षसावासाः पञ्चकूटेऽपि दानवाः। ऊजिता देवरिपवो महाबलपराक्रमः ।।५३ ४८ पक्षियों से आवृत है 1३७-४१ । करंज शैल पर साक्ष त्- भूतपति योगियों के प्रभु, वृषभ, भगवान् महादेव शंकर निवास करते हैं ।४२। उस करंज पर्वत पर नाना प्रकार के वेश धारण करने वाले, दुर्धर्षे प्रमथगण चारों ओर विराजमान है । वसुधार पर्वन पर अमित तेजस्वी महात्मा वसुगुणों के पूज्यतम आठ आयतन (घर) विद्यमान हैं। गिरिवर २२धातु के ऊपर महात्मा सप्तपियों के सात आश्रम है, जो सिद्धो के भवनों युक्त और पवित्र है ।४३-४५। हेमशृङ्ग पर्वत पर महाप्रजापति चतुर्मुख ब्रह्मा का निवास स्थान है, जो सब जीवों के पूज्य है । गजशैल पर' भगवान् रुद्र नान भूतगणों से युक्त होकर प्रसन्न मन से नित्य निवास करते है। सभी जीव इनको नमस्कार करते हैं । शैलेन्द्र सुमेध विविध धतु रंगो से रजित है, वह देखने मे मेघ की तरह मालूम पड़ता है। उस पर कितनी ही कन्दराएँ. वन और कुज है ।४६-४८। वहाँ अत्यन्त पराक्रमी आदित्य, वसु, रुद्र और अऽिवनीकुमार के उत्तमोत्तम महल बने हुये है । इस श्रेष्ठ पर्वत पर ओर भी सिद्ध देवों के कितने ही निवासस्थान है, यक्ष, गन्धवे, किन्नर, आदि नित्य ही जिनकी पूजा क्रिया करते है।४६-। हेमकक्ष नामक पर्वतराज पर एक सुसमृद्ध गन्धर्व नगरी है, जो अस्सी देवपुर की तरह शोभाशालिनी, विशालाकार परिखा और तोरण से युक्त है । अपत्तन नामक सिद्ध गण और युद्ध प्रेमी गन्धर्वगण यहाँ निवास करते है, जिनके अधिपति राजराज कपिंजल है ।५१५२। अनल पर्वत पर रक्षसों का और पंचकूट पर दानवों का निवास है । ये राक्षस और दानव महाबली, पराक्रमी और देवो के शत्रु है।