पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२९०

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पञ्चत्रिशोऽध्यायः २७१ ।।२२ सहस्रमधिकं सोऽथ गन्धेनऽऽघूरयन्दिशः । योजनानां समन्ताद्धं मन्दमारुतवीजितः द्रकेतुरेव प्रथितो भद्रश्वो नास्न यो द्विजाः । यत्र साक्षाद्धृषीकेशः सिद्धसंधैर्महीयते २३ तस्य रुद्रकदम्बस्य तदा श्वेतहरो हतिः । प्राप्तवानमरश्रेष्ठः स तत्र सहितः पुरा २४ तेन चाऽऽलोकितं सर्वं द्वीपं द्विषदनायकाः। यस्य नाम्ना समाख्यातो भद्राश्वो नाम नामतः ।।२५ दक्षिणस्यापि शैलस्य शिखरे देवसेविता। जम्बूः सदा पुष्पफला सदा मल्योपशोभिता २६ सहसूतैर्महस्कन्धैः स्निग्धवर्येवभूषिता । नवैः सदापुष्पफलैः शाखाभिश्चोपशोभित ।।२७ तस्या हृतिप्रमाणानि स्वादूनि च मृदूनि च । फलान्यमृतकल्पानि पतन्ति गिरिमूर्धनि। २८ तस्माद्गिरिवरप्रस्थास्पुनः प्रस्यन्दवाहिनी। नदी जम्बूनदी नाम प्रवृत्ता मधुघाहिनो ।।२७ तत्र जम्बूनदं नाम सुवर्णं ज्वलनप्रभम् । देयालंकारमतुलं जायते पापनाशनम् ३० देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः । तत्पिबन्स्यघृतप्रख्यं मधु जाम्बूरसस्रवम् ३१ स केतुर्दक्षिणे द्वापे चबूझकेषु विश्रुता । यस्या नास्ना स विख्यातो जम्बूद्वीपः सनातनः ॥३२ विपुलस्यापि शैलस्य पश्चिमस्य महात्मनः । जातः शून्नऽतिसुमहानश्वत्थश्चैव पादपः ३३ अपनी गन्ध से हजार योजन से भी दूर की दिशा को सुरभित करते रहते हैं ।२१-२२ब्राह्मणो ! वही वरकेतु देश भद्राश्व के नाम से भी प्रसिद्ध है, जहाँ साक्षात् हृषीकेश भगवान् सिद्धों द्वारा पूजित हुये हैं । मानवश्रेष्ठ ! उसी देश के रुद्र कदम्ब वृक्ष के नीचे इवेत अश्व परं अमर श्रेष्ठ हरि पहले स्वयं उपस्थित हुये थे ।२३-२४ और उन्होंने सम्पूर्ण द्रोप को देखा था, इसी से उस देश का न म भद्राश्व पड़ा ।२५। दक्षिण शैल के शिखर पर देवों द्वारा सेवित, माला से शोभित और सदा फलने-फूलने वाला एक जम्बू वृक्ष है जिसकी जड़े और तना विशाल है । जो चिकने और नये पत्तों से सुशोभित है। जिसमें सदा फल-फून लगे रहते हैं और जो अपनी विशाल शाखाओं से शोभित है । उसके सुस्वादु, कोमल अमृत तुल्य बड़ेबड़े फल पहाड़ के शिखर से टपकते रहते हैं ।२६२८। जिस कारण उस पर्वत श्रेष्ठ के एक गण्ड देश से जम्बू नाम की नदी बह निकली है। जिसमें मथुतुल्य रस प्रवाहित होता रहता है । उस नदी से अग्नि के समान कान्ति वाला जाम्बूनद नाम का पापविनाशी सुवर्ण उत्पन्न होता है. जो देवों के अनुपम अलङ्कार के काम आता है ।२६३०। देव, दानव, गन्धर्व, राक्षस, पन्नग आदि अमृत तुल्य मधुर उस जम्बू रस को पीते रहते हैं। दक्षिण द्वीप में वह केतुस्वरूप जम्बू वृक्ष निखिल जम्बूलोक मे विख्यात है, जिसके नम पर ही वह द्वीप सद से जम्बू द्वीप कहा जा रहा है ।३१-३२। महात्मा स्वरूप उस विशाल झील के परिंचम भृङ्ग पर एक बहुत बड़ा पीपल का वक्ष है। उसमें लटकती हुई एक माला टैगी है उसका तना और शाखाएँ बहुत बड़ीबड़ी और ऊँची हैं । भाँति-भाँति के जीव