पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२८९

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१७6 १२ १३ १४ ॥१५ दशयोजनसाहन आयामस्तेषु पठचंते । देवगन्धर्वयक्षाणां नानारत्नोपशोभिताः । नैकनिर्मुरवप्राढ्या रम्यक्कन्दरनिमिताः नितम्बपुष्पकादम्बैः शोभिताश्चित्रसानवः । मनःशिलादरीभिश्च हरितालतलैष्तथा सुवर्णमणिचित्राभिर्गुहाभिश्च समन्ततः । शुद्धहिङ्गुलकप्रख्यैः काञ्चनैर्धातुमण्डितैः वरकाञ्चनचित्रैश्च प्रवालैः समलंकृताः। रुचिराः शतपर्वाणः सिद्धवासा मुदन्विताः । महाविमानैः श्रीमद्भिः समन्तात्परिदीपिताः पूर्वेण मन्दरो नाम दक्षिणे गन्धमादनः। विपुलः पश्चिमे पाश्र्वे सुपाश्र्वश्चोत्तरे स्मृतः तेषां सहत्रशुङ्गषु वस्रवैडूर्यवेदिकाः । शाखासहस्रकलिताः सुमूलाः सुप्रतिष्ठिताः स्निग्धेनलैर्धनैः पर्युः संच्छन्नविविधाश्रयाः । अनेकयोजनोत्लेधाः सदा पुष्पफलोपगाः यक्षगन्धर्वसेवाश्च सेविताः सिद्धचारणैः । महावृक्षाः समुपलाश्चत्वारो दीपसवः सन्दरस्य गिरेः शृङ्गे महावृक्षः स केतुराट् । आलम्वशाखाशिखरः कन्दरश्चैव पादपः महाकुम्भप्रमाणैस्तु पुष्पैविकचकेसरैः । महागन्धैर्मनोधैश्च शोभितः सर्वकालजैः ॥१६ १७ १८ १६ २० २१ हजार योजनों का कहा गया है। इनके नीचे अनेक झरनों से युक्त नाना रनों से शोभित देव गन्धर्वयक्ष की अनेक रमणीय कन्दराएँ बनी हुई है ।११-१२। मध्य देश में पुष्पों की ढेरी लगी हुई है, जिनसे सुशोभित शेखर चित्रित से जान पड़ते है । वहाँ मैनशिल की कन्दराएँ है । सुवर्ण तथा मणियों से चित्रित गुफाएँ है । सिद्धों के निवास स्थान की छते हरिताल को बनी है जो हिंगुल, सुवर्ण और अन्यान्य धातुओ से मंडित है । प्रवाल और सुवर्ण से उनमे चित्रकारी की गई है। वहाँ सर्वत्र आनन्द और उल्लास जान पड़ता है। इस प्रकार शोभसम्पन्न अनेक प्रासाद और विमान पर्वत पर विराजमान है ।१३-१५। उनके दक्षिण मे गन्धमादन, पूर्व में मन्दरपश्चिम में विपुल और उत्तर में सुपाश्र्व नाम के पर्वत है ।१६। उनके हजारो शुङ्गसमूहों पर दीपपाताका की तरह चार महान् वृक्ष शोभित है, जिनके नीचे हीरक और वेद्यं मणि की वेदी बनी हुई है । जिनके काले और चिकने पत्ते की घनी छाया से अनेकानेक आश्रम ढके हुये है । जहाँ सिद्ध-चारण यक्षगन्धर्व आदि सदा विराजमान रहते है । जिनकी हजारो शाखाएँ अनेक योजनों की ऊँचाई मे फैली हुई है, एवं जिनमें फल-फूल सर्वदा लगे रहते हैं । उन वृक्षों के मूल देश अत्यन्त दृढ है ।१७१€। उस मन्दर वृक्ष के शिखर पर एक केतुराट् नामक महा-वृक्ष विद्यमान है । जिसकी शाखाओ से कन्दरायें, लधु पादप और शिखर आवृत हैं ।२०उन शाखाओं में घट की तरह बड़े-बड़े फल लगे हुये है और विकसित केसरो से युक्त सभी ऋतुओं में खिलने वाले, अत्यन्त सुगन्धित रमणीय पुष्प सुशोभित रहते हैं । मन्द मारुत के झकोरों से वे पुष्प