पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२७८

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चतुस्त्रिंशोऽध्यायः २५६ अथ चतुस्त्रिंशोऽध्यायः जम्बूद्वीपवर्णनम् ऋषय ऊचुः एवं प्रजासंनिवेशं श्रुत्वा च ऋषिपुंगवः । पप्रच्छ निपुणः सूतं पृथिव्यायामविस्तरों ।।१ कति द्वीपाः समुद्र वा पर्वतश्च कति प्रभो । कियन्ति चैव वर्षाणि तेषु नद्यश्च का स्मृताः ॥२ महाभूतप्रमाणं च लोकालोकौ तथैव च । पर्यायपारिमाण्यं च गतिश्चन्द्रार्कयोस्तथा । [*एतत्प्रसूहि नः सर्वे विस्तरेण यथा तथा १।३ सूत उवाच अत ऊध्र्व प्रवक्ष्यामि पृथिव्यायामविस्तरम् । संख्यां चैव समुद्रणां द्वीपानां चैव विस्तरम् ॥४ यावन्ति चैव वर्षाणि तेषु नद्यश्च याः स्मृताः । महाभूतप्रमाणं च लोकालोकौ तथैव च । पर्यायपरिमण्यं च गतिश्चन्द्रकयोस्तथा॥ १५ द्वीपभेदसहस्राणि सप्तस्वन्तर्गतानि वै। न शक्यन्ते प्रमाणेन वक्तुं वर्षशतैरपि ६ फ अध्याय ३४ जम्बूद्वीप का वर्णन ऋषिगण बोले-पंडित ऋषिश्रेष्ठगण जब इस प्रकार प्रजाओं की कथा सुन चुकेतव सूते से गुंडी कि, पृथिवी की परिधि और विस्तार क्या है ? प्रभो ! कितने होप और समुद्र है ? कितने पर्वत, कितने देश है ? उनमें कितनी नदियाँ है, और वे किन किन नामों से प्रसिद्ध है ? लोकालोक का प्रमाण क्या है ? महाभूतों का प्रमाण क्या है ? चन्द्र सूर्य की गति तथा उनकी परिवि और विस्तार क्या है ? यह हम लोगों को विस्तार के साथ क्रमशः सुनाइये ॥१-३।। सूतजी बोले-इसके आगे हम पृथ्वी की परिधि विस्तारसमुद्रों की संख्या, द्वीपों का विस्तर देश और वहाँ की नदियों के नाम, महाभूतों का प्रमाण, लोकालोक तथा सूर्यश्चन्द्रों की गति और उनका परिमाणं क्रमणकहते हैं ४-५। सातो द्वीप के अन्तर्गत हजारों उपीप हैं, जिनका प्रमाण के साथ पृथक् पृथङ्क

  • धनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्यो घ. पुस्तके नास्ति ।