पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२७६

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त्रयस्त्रिशोऽव्ययः २५७ ।।४४ ।।५२ विपर्ययो न तेष्वस्ति जरामृत्युभयं न च । धर्माधमौ न तेरवस्तां नोत माधममध्यमाः।। न तेष्वस्ति युगावस्था क्षेत्रेष्वेव तु सर्वशः नाभेहि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तोन्नबोधत । नाभिस्स्वजनयत्पुत्रं मरुदेव्यां महाद्युतिः । ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् ५० ऋषभाद्भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः । सोऽभिषिच्याथ भरतः पुत्रं प्राव्राज्यमास्थितः ५१ हिमाद् दक्षिणं वर्ष भरताय न्यवेदयन् । तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्द्धधाः भरतस्याऽऽत्मजो विद्वान्सुमतिर्नाम धार्मिकः । बभूव तदीस्मस्तद्राज्यं भरतः संन्ययोजयत् । पुत्रसंक्रामितश्रीको वनं राजr विवेश सः ।।५३ तैजसस्तत्सुतश्चापि प्रजापतिरमित्रजित् । तैजसस्याऽऽप्नजो विद्वानिन्द्रद्युम्न इति श्रुतः ५४ परमेष्ठी सुतस्याथ निधने तस्य शोभनः। प्रतीहरः तस्य कुले तस्य नाम्ना जज्ञे तदन्वयात् ॥ प्रतिहर्तेति विख्यातो जज्ञे तस्यापि धीमतः ५५ उन्नेता प्रतिहर्तुस्तु भुवस्तस्य सुतः स्मृतः । उद्गीथस्तस्य पुत्रोऽभूत्प्रताविवापि तत्सुतः प्रतावेस्तु विभुः पुत्रः पृथुस्तस्य सुतो मतः। पृथोश्चापि सुतो नक्तो नक्तस्यापि गयः स्मृतः ॥५७ १५६ प्रकार का परिवर्तन है और न बुढ़ापा या मृत्य का डर। वहाँ धर्म है, अधर्म नही । उत्तम, मध्यम और अघम का भेद नहीं है । उन सभी क्षेत्रों में कभी भी युगानुकूल अत्रस्था नही होती है। ।४७-४e। अब हम हिम- क्षेत्र के अघिपति नाभि के वंश-विस्तार को कहते है । नाभि ने मरुदेवी मे ऋषभ नामक एक पुत्र उत्पन्न किया, जो अत्यन्त तेजस्वी, राजाओं में श्रेष्ठ और सभी क्षत्रियों का पूर्वज था 1५०१ ऋषभ से वीर भरत को उत्पत्ति हुईअपने स भ्राताओं ज्येष्ठ थे ऋषभ ने अपने पुत्र भरत को राजगद्दी पर बैठ कर स्वयं संन्यास , जो में । ले लिया। उन्होंने भरत को हिम नामक दक्षिण देश दिया । इस कारण विद्वान् लोग उनके नाम से उस देश भारतवर्ष कहते हैं ।५१-५२ भरत के पुत्र सुमति हुये. जो विद्वान् और धामक थे । तव भरत ने मुमति च राज्य दे दिया और बेटे को राज्य भार सौंपने के बाद स्वयं जंगल चले गये । सुमति को तेजस नामक पुत्र हुआ । इन्द्रद्युम्न के मर जाने पर स्वयं परमात्मा उसके वंश में प्रतिहर नाम से उत्पन्न हुये । प्रतिहर को प्रतिहर्ता नाम का बुद्धिमान् और निख्यात पुत्र हुआ 1५३-५५ प्रतिहर्ता को उन्नेत, उन्नेता को मुध, भुव को उद्गीथ, उद्गीथ को प्रतावि, प्रतावि को विभु, विभु को पृथु, पृष्ठ को नक्त, नक्त को गय, गय को नर, नरको फा०-३३