पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६३

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२४४ वायुपुराणम् ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ नदविगेसमायुक्तं कालो धावति संहरन् । अहोरात्रकरस्तस्मात्स वायुरभवत्पुनः एते प्रजानां पतयः प्रधानः सर्वदेहिनाम् । पितरः सर्वलोकानां लोझात्मनः प्रीतिताः ध्यायतो ब्रह्मणो वक्त्रादुदन्समभवद्भवः । ऋषिविशो महादेवो भूतात्मा प्रपितामहः ईश्वरः सर्वभूतानां प्रणबायोपपद्यते । आत्मवेशेन भूतानामन्नप्रत्यङ्गसंभवः अग्निः संवत्सरः सूर्यश्चन्द्रमा वायुरेव च । युगाभिमानी कालात् नित्यं संक्षेपकृद्विभुः । उन्मादकोऽनुग्रहकृत्स इद्वत्सर उच्यते रुद्राविष्टो भगवता जगत्यस्मिन्स्वतेजसा । आश्रयाश्रयसंयोगात्तनुभिर्नामभिस्तथा ततस्तस्य तु वीर्येण लोकानुग्रहकारकम् । द्वितीयं अद्रसंयोगं शतं तस्यैकवारकम् देवत्वं च पितृत्वं च कालत्वं चस्य यत्परम् । तस्माद्वै सर्वथा भद्रस्तद्वद्भिरभिपूज्यते एलिः पतीनां भगवान्प्रजेशानां प्रजापतिः। भवनः सर्वभूतानां सर्वेषां नीललोहितः । ओषधीः प्रतिसंधत्ते रुद्रः क्षीणः पुनः पुनः इत्येषां यदपत्यं वै न तच्छक्यं प्रमाणतः। बहुत्यात्परिख्यातु पुत्रपौत्रमनन्तकम् ५६ १५७ ५८ Pl५ ६० के वेग की तरह वहने लगती है और उस समय से फिर वह वायु दिन रात को करने वाली होती है । ये सभी प्रजापति सब देहधारियो में प्रधान, सब लोकों के पिता गये है ५०-५२। ध्यान करते हुए और लोकमा कहे ब्रह्म के मुख से रोते हुई रुद्र उत्पन्न हुए । ये ही ऋषि, विप्र, महादेव, भुतामा और प्रपितामह है । ये ही सभी के ईश्वर और प्रणव के लिये उत्पन्न हुये है । ये ही आत्मा रूप से जीवो के अंग-प्रत्यंग की उत्पत्ति के कारण है । ये ही अग्नि, संवत्सर, सूयं चन्द्रमा, वायु, युगाभिमानी, कालरुमा, नित्य संहार करने वाले, विभु, उन्मादक और अनुग्रह करने वाले है । ये ही इद्वत्सर कहे । जाते हैं 1५३५५। जोधाविष्ट होकर ये ही भगवान् इस ससार में अपने तेज से आश्रय और आश्रयसंयोग के कारण अपने नामों और शरीरों से वर्तमान रहते है । तब उन्ही के पराक्रम से लोकों के अनुकूल कल्याणकारक दूसरी विस्तृत सृष्टि देवों, पितरों, काल तथा अन्यान्यों की हुई । इस कारण उन उत्पन्न लोकों द्वारा वे ही भद्ररूप महादेव पूजे जाते हैं ।५६-५८ । ये मील- लोहित भगवान् अधीश्वरों के अधीश्वर, प्रजाधिपों के प्रजापति, सब जीवों के उत्पादक और क्षीण ओषधियों के पुनः पुनः उत्पादक है । इन सब के जो पुत्र हैं, ये प्रमाण मे बहुत अधिक हैं और इनके पुत्रपौत्र भी अनन्त हैं; इसलिये उनकी गणना करना शक्ति के बाहर है । जो आदमी स्थिर कीfत वाले महान् पुण्यकर्मा प्रजेशों के इस