पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६०

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एकत्रिंशोऽध्यायः २४१ ।।२० नो शक्यमानुकूव्र्येण वक्तुं वर्षशतैरपि । बहुत्वान्नामधेयानां संख्या तेषां कुले तथ. यां वै व्रजकुलाद्यास्तु आसन्स्वायंभुवेऽन्तरे। कालेन बहुनाऽतीता अयनाब्दयुगल मैः २१ ॥२२ ऋञ्जय उचुः क एष भगवान्कालः सर्वभूतपहरकः। कस्य योनिः किमादिश्च हि तत्स्वं स हिमरश्मजः किमस्य चक्षुः का सूतः के चास्यावयवाः स्मृताः । किनामधेयः कोऽस्यात्मा एतत्प्रसूहि पृच्छताम् । स्यूत उवाच श्रूयतां कालसद्भावः श्रुत्वा चैवावधार्यताम् । सूर्ययोलिनिमेषदिः संख्यावक्षुः स उच्यते २४ सूतरस्य त्वहोरात्रे निमेषावयवश्च सः । संवत्सरशतं त्वस्य नास चास्य कलात्मकम् ॥ सांप्रतानागततीलाम स प्रजापतिः २५ पञ्चानां प्रविभक्तानां कालवस्थां निधोधत । दिनर्थमाखमासैस्तु ऋतुभिस्त्वयनैस्तथा २६ संवत्सरस्तु प्रथमो द्वितीयः परिवत्सरः। इद्वत्सरस्तृतीयस्तु चतुर्थश्चानुवत्सरः २७ वत्सरः पञ्चमस्तेषां कालः स युगसंज्ञितः । तेषां तु तत्वं वक्ष्यानि कीर्यमानं निबोधत २८ तथा अप्सराओं का जो गण था, उसका अनुक्रम से कहा जाना सौ वर्षों में भी सम्भव नहीं है, क्योकि उन राजकुलीनों के नामों की संख्या बहुत अधिक थी । स्वायम्भुव मन्वन्तर में जो व्रजकुलनामक प्रजाजन थे, वे अरान, वर्ष और युगक्रम से बहुत दिन व्यतीत हो चुके है ।१६-२१॥ ऋषिगण बोले-सब जीवो का हरण करने वाले ये भगवन् काल कौन है ? किसके पुत्र और किसके पिता है ? तत्व, स्वरूप, चक्षु, मूत, अवयव आदि इनके न से है ? इनका नया नाम है ? कौन इनकी आरमा है इन प्रश्नों को हम पूछ रहे है. कहिये २२-२३॥ ? सूतजी बोले-आप लोग काल के सम्बन्ध में विशेष ध्यान पूर्वक सुनिये और सुनकर हृदय मे रखिये । इनके ( काल के ) उत्पन्न करने वाले सूर्य है, इनका आदि निमेष है और ये संख्या-चक्षु कहलाते है। दिनरात इनकी मूति है. निमेष अवयव है और कलास्वरूप संवत्सरशत इनका नाम है । भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालस्वरूप वे प्रजापति है ।२४-२५ दिन, पक्ष, मास, ऋतु और अयन नामक पाँच भागो में विभक्त काल के अवस्था-भेद को सुनिये । पहला सवत्सर, द्वितीय परिवत्सर, तृतोय इद्वत्सरचतुर्थ अनुवसर और पंचम युग नामक वसर कहलाता है । इनके तत्त्व को मैं कहता हूं सुनिये ।२६२८ ऋतु नामक जिस -३१