पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२५७

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२३८ वायुपुराणम् देवस्य सगुहस्याथ देव्या नन्दीश्वरस्य तु । बलि विभवतः कृत्वा दमेन नियमेन च ३१५ ततः स शुरुको गृहीयान्नामान्याशु यथाक्रमम् । ईप्सिताँल्लभतेऽत्यर्थं कामन्भोगांश्च मानवः । मृतश्च स्वर्गमाप्नोति स्त्रीसहस्रपरीवृतः ३१६ सर्वकर्मसु युक्तो वा युक्तो वा सर्वपातकैः । पठन्दक्षकृतं स्तोत्रं सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ मृतश्व गणसालोक्यं पूज्यमानः सुरासुरैः ३१७ वृषेव विधियुक्तेन विमानेन विराजते । आभूतसंप्लवस्थायी रुद्रस्यानुचरो भवेत् इत्याह भगवान्व्यासः पराशरसुतः प्रभुः । नैतद्वेदयते कश्चिन्नदं श्रव्यं तु कस्यचित् ३१६ श्रुत्वैतत्परमं गुह्य येऽपि स्युः पापकारिणः । वैश्या स्त्रियश्च शूद्रश्च रुद्रलोकमवाप्नुयुः ॥३२० आवयेद्यस्तु विप्रेभ्यः सदा पर्वसु पर्वसु । रुद्रलोकमवाप्नोति द्विजो वे नात्र संशयः ३१८ ३२९ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते दक्षप्रोक्तस्तवो नाम त्रिंशोऽध्यायः ।।३०।। सम्पन्न हो जाते हैं । जो इस स्तोत्र को जोरजोर से पढ़ता है या मन-ही-मन पढ़ता है, उसके सभी कार्य स्तोत्र पढ़ने के कारण सिद्ध हो जाते है 1३१४ ३१५। काfतकेय के साथ नन्दीश्वर महदेव और देवी को धन के अनुरूप नैवेद्य चढाकर यमनियम पूर्वक दक्षिणा देकर स्तोत्र मे आये हुए नामों का शीघ्रता से पाठ करे। इस विधि से जो मानव इस स्तोत्र का पाठ करता है. यह अभिलषित कामनाओ को और सकल भोगों को प्राप्त करता है एवं मरने पर सहस्र स्त्रियों के साथ स्वर्ग को जाता है ।३१६३१७। जो सभी प्रकार के विषय-भोगों में लिप्त है या सभी पातकों से युक्त है, यदि दक्ष कृत स्तोत्र को पढे, तो वे भी सब पापो से मुक्त हो जाते हैं और मरने पर देव-दानवों से पूजित होकर गणसालोक्य प्राप्त करते, सुसज्जित विमान पर वह इन्द्र की तरह शोभित होते और रुद्र के अनुचर होकर युगान्त पर्यन्त वर्तमान रहते हैं, पराशरसुत भगवन् व्यास ने ऐसा कहा है ।३१८३१&। विना विचारे सहसा किसी को बतलाना नही चाहिए और न तो सुनाना ही चाहिए। इस परम गुह्य स्तोत्र को सुनकर सभी पापात्मा वैश्य, स्त्री, शूद्र ‘आदि रुद्रलोक प्राप्त करते हैं । जो ब्राह्मण प्रति पर्व में इसे विप्रों को सुनता है, वह नि:सन्देह रुद्रलोक प्राप्त करता है ।३२०-३२१। श्रीवायुमहापुराण का दक्षस्तुति नामक तीसवाँ अध्याय समाप्त ।।३०।