पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२२१

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२०२ वर्पुराणैसें २६ ३१ स वै शङ्खपदः श्रीमांल्लोकपालः प्रजापतिः । दक्षिणस्यां दिशि रतः काम्यां दत्त्व प्रियव्रते ॥२८ काम्या प्रियव्रताल्लेभे स्वायंभुवसमान्सुतान् । दशकन्याद्वयं चैव यैः क्षत्रं संप्रट्सततम् पुत्रो धनकपीवांएच सहिष्णुर्नाम विश्रुतः यशोघारी विजज्ञे वे कामदेवः सुमध्यमा ३० ऋतोः क्रतुसतः पुत्रो विजज्ञे संततिः शुभा । नैषां भार्याऽस्ति पुत्रो वा सर्वे ते ह्यूर्ध्वरेतसः । षष्टच तानि सहस्राणि वालखिल्या इति श्रुतः अरुणस्याग्रतो यान्ति परिवार्य दिवाकरम् । अभूतसंप्लवात्सर्वं पतङ्गसहचारिणः ३२ स्वसारौ तु यवीयस्यौ पुण्यात्मसुमती च ते । पर्यसस्य स्नुषे ते वै पूर्णीमाससुतस्य वे ३३ ऊर्जायां तु वसिष्ठस्य पुत्रा वै सप्त जज्ञिरे । ज्यायसी च स्वस तेषां पुण्डरीका सुमध्यमा ॥३४ जनन सा द्युतिमतः पाण्डोस्तु महिषी प्रिया । अस्यां त्विमे यवीयांसो वसिष्ठाः सप्त विश्रुताः ।३५ रजःपुत्रोऽर्धबाहुल सवनश्चाधनश्च यः। सुतपाः शुक्ल इत्येते सर्वे सप्तर्षयः स्मृताः ३६ रजसो वाऽप्यजनयन्मार्कण्डेय यशस्विनी । प्रतीच्यां दिशि राजन्यं केतुमन्तं प्रजापतिम् ॥३७ गोत्राणि नामभिस्तेषां वसिष्ठानां महात्मनाम्। स्वायंभुवेऽन्तरेऽतीतास्त्वग्नेस्तु शृणुत प्रजाः ॥३८ उस्पन्न किया । वही श्रीमान् लोकपाल प्रजापति शर्वोपाद अपनी भगिनी काम्या को राजा प्रियव्रत से ब्याह । कर दक्षिण दिशा की ओर चले गये ।२६२२काम्या ने प्रियव्रत से स्वयम्भू तुल्य दस पुत्रों को और दो कन्याओं को प्राप्त किया। इन्हीं पुत्रों से क्षत्रकुल की वृद्धि हुई । पुलह के तीसरे पुत्र सहिष्णु या धनकपी वान् ने सुमध्यमा नामवाली अपनी पत्नी से यशोघारी कामदेव नामक पुत्र को उत्पन्न किया । ऋतु को ऋतु के तुल्य पुत्र हुआ। इसी से उनकी सन्तति चली। इन्हें न भार्या थी और न पुत्र । सभी कर्वरेता थे । ये साठ हजार वालखिल्य कहलाते है ।२६-३१। ये दिवाकर को चारों ओर घेर कर अरुण के आगे आगे जाते हैं । जब तक प्रलय नही होता है, तब तक ये सूर्य के साथ चलते रहते है । इन्हे दो छोटी बहने थीं, जिनका नाम पुण्या और आमसुमती था । ये दोनों ही पूर्णमास सुत पर्वस की पुत्र-वधुये थी । ऊर्जा के ( गर्भ से वसिष्ठ । को सात बेटे और एक पुत्री हुई, जिसका नाम पुण्डरीक था ।३२-३४ छुपाक टि वह द्युतिमान्' को माता और पाण्डु की प्रिय परनी थी । इसी के गर्भ से विख्यात सप्त वासिष्ठ ने भी जम्म ग्रहण किया। इनके नाम रजं, पुत्र, अर्जुबाहु, सवन, अधन, सुतपा ओ शुल्क थे। ये सप्तष कहलाते है ।३५-३६। मनस्विनी मार्कण्डेयी ने रजस् से राजन्य, केतुमान् और प्रजापति को उत्पन्न किया । इन्होंने प्रतीची दिशा में आश्रय प्राप्त किया था । महात्मा वासिष्ठो का वंश नाम के साथ स्वायम्भुव मन्वन्तर में लुप्त हो गया । अब अग्नि का वंश