पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२१८

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अष्टाविंशोऽध्यायः १६६ अथाष्टाविंशोऽध्यायः ऋषिवंशानुकीर्तनम् धूत उवाच भृगोः ख्यातिर्विजज्ञेऽथ ईश्वर सुखदुःखयोः । शुभाशुभप्रदातारौ सर्वप्राणभृतामिह । देवौ धाताविधातारौ मन्वन्तरविचारिणौ १ तयोज्येष्ठा तु भगिनी देवी श्रीर्लोकभाविनी । सा तु नारायणं देवं पतिमासाद्य शोभनम् । नारायणात्मजौ साध्वी बलोत्सहौ व्यजायतं २ तस्यास्तु मानसाः पुत्रा ये चान्ये दिव्यदारिणः । ये वहन्ति विमानानि देवानां पुण्यकर्मणाम् । ३ हे तु कन्ये स्मृते भार्यं विधातुर्धातुरेव च । आयतिनियतश्वे व तयोः पुत्रौ दृढव्रतौ ४ पाण्डुश्चैव मृकण्डुश्च ब्रह्मकोशौ सनातनौ । मनस्विन्यां मृकण्डोश्च मार्कण्डेयो बभूव ह। ५ सुतो वेदशिरस्तस्य मूर्धन्यायामजायत । पीवर्या वेदशिरसः पुत्रा वंशकराः स्मृताः ।। मार्कण्डेया इति ख्याता ऋषयो वेदपारगाः ६ अध्याय २८ ऋषिवंश-कीर्तन सूत जी बोले--भृगु से ख्याति के गर्भ में सुख दुःख के प्रभु, निखिल प्राणियों को शुभाशुभ देनेवाले, मन्वन्तर विहारी धाता और विधाता नामक दो पुत्र उत्पन्न हुये ।१। लोवाभाविनी श्री देवी उनकी ज्येष्ठा भगिनी थी, जिन्होने नारायण को पति रूप में वरण किया। उस साध्वी के गर्भ से नारायण को बल और उत्साह नामक दो पुत्र उत्पन्न हुये ।२। ये ही क्यों इस साध्वी श्री देवी के वे सभी मानस पुत्र है, जो दिव्यचारी है और पुण्य कर्म करनेवाले देवों के विमानों का संचालन करते हैं । आयति और नियति नामक दो प्रसिद्ध कन्यकार्ये धाता और विधाता की भार्या थीं, उन्हें पाण्डु और मृकण्डु नामक “ सनातन ब्रकोश स्वरूप दो दृढव्रत पुत्र उत्पन्न हुये ।३-४। मृकण्डु से मनस्विनी के गर्भ में मार्कण्डेय का जन्म हुआ । मुर्कण्डेय को मूर्धन्या से वेदशिरा नामक पुत्र हुआ । फिर पीवरी के गर्भ से वेदशिरा को बहुत से वंश बढ़ानेवाले पुत्र हुये । वे सभी मार्कण्डेय नाम से प्रसिद्ध है और सभी वेदपारग ऋषि हैं |५-६ । पाण्डु को पुण्डरीका के गर्भ से