पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२०७

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

१८८ वायुपुराणम् अथ षडविंशोऽध्यायः बरोडजिनिरूEणम् सूत उवाच ।।१ २ ।।३ अहो विस्मयनीयानि रहस्यानि महामते । त्वयोक्तानि यथातत्त्वं लोकानुग्रहकारणात् तत्र वै संशयो मह्यामवतारेषु शूलिनः। किं कारणं महादेवः कति प्राप्य सुदारुणम् । हित्वा युगानि पूर्वाणि अवतारं करोति वे अस्मिन्मन्वन्तरे चैव प्राप्ते वैवस्वते प्रभो । अवतारं कथं चन एतदिच्छामि वेदितुम् न तेऽस्त्यविदितं किंचिदिह लोके परत्र च । भक्तानामुपदेशार्थं विन्यात्पृच्छतो मम ॥ कथयस्व महाप्राज्ञ यदि श्रव्यं महामते। लोमश उवाच एवं पृष्टोऽथ भगवान्वयुर्लोकहिते रतः । इदमाह महातेजा वपुलकनमस्कृतः ४ I५ अध्याय २६ स्वरोत्पत्ति निरूपण सूतजी बोले—महामति ! आपने संसारवासियों पर दया करके जिन विस्मयकारक रहस्यों को तत्त्वतः कहा है, उनमें महादेव के अवतार के संबन्ध में कुछ हमें सन्देह रह गया है ।१३। मया कारण है कि, अन्य पूर्व युगों को छोडकर महादेव कठिन कलिकाल में अवतार ग्रहण करते हैं ? प्रभो ! इस ववस्वत मन्वन्तर के प्राप्त होने पर वे क्यों अवतार ग्रहण करते है, हम यह जानना चाहते है ।२-१॥ परलोक या इस लोक की कोई भी वात आपसे छिपी नहीं है । महामति ! महापण्डित ! हम विनय पूर्वक आपसे पूछने है । भक्तों को उपदेश देने के लिये यह हमें कहिये, यदि आप सुनाना उचित समझते हो ॥४॥ लश ऋषि बोले-इस प्रकार पूछे जानेपर लोककल्याणकर्ता भगवन् वायु ने कहा — ‘गTधय ! आपने जो हमसे पूछा है, वह अन्त गुप्त बथ है ; किन्तु हम उसे यथाक्रम कहते हैं, उसे आप सानिये !