पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१५९

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१४७ अथ त्रयोविंशोऽध्यायः माहेश्वरावरयोगः ३ ४ वायुरुवाच एकत्रशत्तमः कल्पः पीतवास इति स्मृतः । ब्रह्म यत्र महातेजाः पीतवर्णत्वमागतः १ ध्यायतः पुत्रकामस्य ब्रह्मणः परमेष्ठिनः। प्रादुर्भूतो महातेजाः कुमारः पीतवस्त्रवान् पोतगन्धानुलिप्ताङ्गः पोतमाल्यधरो युवा । पीतयज्ञोपवीतश्च पीतोष्णपो महाभुजः तं दृष्ट्वा ध्यानसंयुक्तं महा लोकेश्वरं प्रभुम् । मनसा लोकधातारं ववन्दे परमेश्वरम् ततो ध्यानगतस्तत्र ब्रह्मा माहेश्वरीं पराम्। अपश्यद् विरूपां च महेश्वरमुखच्युताम् ॥५ चतुष्पदां चतुर्वक्त्रां चतुर्हस्तां चतुःस्तनीम् । चतुर्नेत्रां चतुःशृङ्गी चतुर्दष्टां चतुर्मुखम् ॥६ दृtत्रशल्लकसंयुक्तामीश्वरीं सर्वतोमुखम् । स तांदृष्ट्वा महातेजा महादेवीं महेश्वरीम् ॥७॥ पुनराह महादेवः सर्वदेवनमस्कृतः। मतिः स्मृतिद्वंद्विरिति गायमानः पुनः पुनः । अध्यथ २३ महेश्वरावतार योग दणु बोले-इकंतीसवाँ कल्प पीतवासा कहलात है, जिसमे हृतेजस्वी ब्रह्म पीतवर्ण के हो जाते है ।१। उन कल्प मे पुत्रकागना से ध्यान करने वाले परमेष्ठी प्र वो महातेजस्वी पीतवस्त्रधारी एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसके अङ्गो पर पीत चन्दन का लेप लगा हुआ था, जिसकी ग्रीवा पीत माला से सुशोभित थी जो युवक था, जिसके गले मे पीत यज्ञोपवीत और शिर पर पीली पगड़ी शोभित थी, वडीवडी भुजाओं वाला अत्यन्त तेजस्वी था । ब्रह्मा ने उस ध्यानमग्न, लोकेश्वर, लोकपालका -वह कुमार प्रभु को देखकर मन ही मन प्रणाम किया ।२-४। तदनन्तर ध्यानमग्न ब्रह्मा ने उस महेश्वर के मुख से उत्पन्न एक विचित्र गाय को देखा, जिसके चार पैर, चार मुखचार हाथ, चार स्तन, चार नेत्र चा सीगे चार दंत और चार मुख थे। जो चारों ओर मुख वाली, वत्तीस लोकों से युक्त, ईश्वरी थी । । सव देवो से पूजित महावेव उस महेश्वरी महादेवी को देखकर बार बार दहने लगे कि तुम स्मृति, बुद्धि और