पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१५६

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द्वाविंशोऽध्यायः १३७ ८ रथंतरस्य साम्नस्तु उपरिष्टान्निबोधत । कल्पान्ते नामधेयानि मन्त्रोत्पत्तिश्च यस्य या एकोनत्रिशकः कल्पो विज्ञेयः श्वेतलोहितः । यस्मस्तत्परमं ध्यानं ध्यायतो ब्रह्मणस्तथा श्वेतोऽणीषः श्वेतमाल्यः श्वेताम्बरधरः शिखी । उत्पन्नस्तु महातेजाः कुमारः पावकोपमः ।१० भीमं मुखं महारौद्रं सुघोरं श्वेतलोहितम् । दीप्तं दीप्तेन वपुषा सहास्यं श्वेतवर्चसम्। ११ तं दृष्ट्वा पुरुषः श्रीमान्ब्रह्मा वै विश्वतोमुखः । कुमारं लोकधातारं विश्वरूपं महेश्वरम् १२ पुराणपुरुषं देवं विश्वमा योगिनां वरम् । ववन्दे देवदेवेशं ब्रह्म वै समचिन्तयत् १३ हृदि कृत्वा महादेवं परमात्मानमीश्वरम् । सद्योजातं ततो ब्रह्म ब्रह्मा वै समचिन्तयत् | १४ ज्ञात्वा मुमोच देवेशो हृष्टो हासं जगत्पतिः। ततोऽस्य पाश्र्वतः श्वेता ऋषयो ब्रह्मवर्चसः ।१५ प्रदुर्भूता महात्मानः श्वेतमाल्यानुलेपनाः। सुनन्दो नन्दकश्चैव विश्वनदोऽथ नन्दनः १६ शिष्यास्ते वै सहात्मानो यैस्तु ब्रह्म ततो वृतम् । तस्याग्रे श्वेतवर्णाभः श्वेतनामा महामुनिः ॥१७ विजयेऽथ महातेजा यस्माज्जज्ञे नरस्त्वसौ । तत्र ते ऋषयः सर्वे सद्योजातं महेश्वरम् १८ तस्माद्विश्वेश्वरं देवं ये प्रपद्यन्ति वै द्विजाः। प्राणायामपरा युक्ता ब्रह्मणि व्यबसयिनः १६ साम के बाद कल्पों का नाम और जिस कल्प में जिस मन्त्र की उत्पत्ति हुई उसका वर्णन कर रहा हुँ ।८। उनतीसवाँ कप श्वेतलोहित नाम का है । जिस कल्प में परम ध्यानमग्न ब्रह्मा को श्वेतोष्णीषधारी, रवेत माला और श्वेत वस्त्र धारण करने वाला, अग्नि के समान एक परम तेजस्वी कुमार उत्पन्न हुआ ॥६-१०। उस भीममुख, महारौद्र, घोर रूप, श्वेतलोहित, अपनी देहकान्ति से प्रदीप्त, श्वेत वर्चस् और महामुख कुमार को देखकर श्रीमान् विश्वमुख ब्रह्मा ने उसको विश्वरूप लोक गलक महेश्वर समझा और उस पुराणपुरुष, योगिवर देवदेवेश की लोकपितामह ब्रह्मा ने वन्दना की । तदनन्तर उस सद्योजात परमात्मा ईश्वर, महादेव ब्रह्म का हृदय मे ध्यान कर ब्रह्मा विचार करने लगे। १ १४। सारे रहस्य को जानकर जगत्पति, देवेश श्वेत ने प्रसन्न हो अट्टहस किया जिससे उनके पाश्र्व से श्वेत मला और श्वेत अंगराग से सुशोभित. ब्रह्मतेज से युक्त श्वेत वर्ण के सुनन्द, नन्दन विश्यनन्द और नन्दन नामक तेजस्वी ऋषि उत्पन्न हुये ।१५-१६। वे महात्मा श्वेत देव के शिष्य हुये, ब्रह्मज्ञानी वे ब्रह्मा के चरों ओर आसीन थे । उसी समय उस् श्वेत ब्रह्म के आगे एक श्वेत वर्ण के श्वेत नामक महातेजस्वी मुनि उत्पन्न हुये मह जिनसे महातेजस्वी उत्पन्न १७३तदनन्तर उन ने उस महेश्वर की नर ऋषि हुये ।। ऋषियों सद्योजात कृपा छाया में आश्रय प्राप्त किया । द्विचो ! इसलिये जो प्राणायाम परायण योगी और ब्रह्मनिष्ठ व्यक्ति उस १८