पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१४०

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एकोनविंशोऽध्यायः १२१ भूयो भूयः श्वसेद्यस्तु रात्रौ वा यवि वा दिवा । दीपगन्धं च नो वेति विद्यान्मृत्युमुपस्थितम् ।२१ रात्रौ चेन्द्रायुधं पश्येद्दिवा नक्षत्रमण्डलम् । परनेत्रेषु चऽऽत्मानं न पश्येन्न स जीवति ॥२२ नेत्रमेकं स्रवेद्यस्य कथं स्थानाच्च भ्रश्यतः। नासा च वक्रा भवति स ज्ञेयो गतजीवितः ॥२३ यस्य कृष्णा खरा जिह्वा पङ्कभासं च वै मुखम् । गण्डे चिपिटके रक्ते तस्य मृत्युरुपस्थितः ॥ ।२४ मुक्तकेशो हसंश्चैव गायन्नृत्यंश्च यो नरः। याम्याशाभिमुखो गच्छेत्तदन्तं तस्य जीवितम् ॥२५ यस्य स्वेदसमुद्भूताः श्वेतसर्षपसंनिभाः । स्वेदा भवन्ति ह्यसकृत्तस्य मृत्युरुपस्थितः २६ उष्ट्रा वा रासभा वाऽपि युक्ताः स्वप्ने रथेऽशुभाः । यस्य सोऽपि न जीवेत दक्षिणाभिमुखो गतः ॥२७ हे चात्र परमे रिष्टे एतद्पं परं भवेत् । घोषं न शृणुयात्कथं ज्योतिर्नेत्रे न पश्यति श्वभ्र यो निपतेत्स्वप्ने द्वारं चास्य न विद्यते । न चोत्तिष्ठति यः श्वभ्रातदन्तं तस्य जीवितम् ॥२e ऊध्र्वा च दृष्टिनं च संप्रतिष्ठा रक्ता पुनः संपरिवर्तमाना। मुखस्य चोष्मा शुषिरा च नाभिरत्युष्णसूत्रो विषमस्थ एव ३० दिवा वा यदि वा रात्रौ प्रत्यक्षे योऽभिहन्यते । तं पश्येदथ हन्तारं स हतस्तु न जीवति ॥३१ २६ उसकी आयु भी बीती हुई कहिये ।२०। दिन और रात में भी जो जो-जोर से साँस ले और दीप निर्वाण की गन्ध को नहीं समझे, उसकी भी मृत्यु उपस्थित समझिये ।२१। रात में इन्द्रधनुष को देखने वाला दिन में नक्षत्रमण्डल को देखने वाला और अपना प्रतिबिम्ब दूसरे की आंखों में देख मनुष्य अधिक दिन नहीं जीता है ।२२। जिसकी एक आंख से ही सदा आंसू आता रहे, दोनों कान स्थानभ्रष्ट हो जायें, और नाक टेढ़ी हो जाय, वह भी आयु क्षीण कहलाता है ।२३। जिसकी जीभ खुरखुरी और काली हो जायमुंहपर कीचड़ की आभ मालूम पड़े और गण्ड स्थान चिपटे होकर लाल दिखाई पड़ने लगे. उसकी भी मृत्यु उपस्थित समझिये २४स्वप्न में जो व्यक्ति खुला केश, हंसता हुआ और गाता हुआ दक्षिण दिशा की ओर जाता है उसके जीवन का भी अन्त समझिये ।२५। श्वेत सरसों की तरह जिसे बारबार पसीना निकले, उसकी भी मृत्यु उपस्थित समझिये ।२६। ऊंट या गधे जुते हुये रथ पर जो स्वप्न में दक्षिण दिशा जाता है। वह भी नहीं जीता है।२७। जो कान से शब्द नहीं सुनता है और जिसको आँखें पथरा जाती हैं. उनकी मृत्यु आसन्न समझिये; क्योंकि ये दोनों अरिष्ट चरम कोटि के हैं ।२८। स्वप्न में जो गड्ढे में गिर और निकलने का रास्ता नही पावे और उस गड्ढे जाय से निकले ही नहीं, उसके जीवन का भी अन्त समभिये ।२९। जिसकी दृष्टि ऊर्ध्वगत, रक्तवर्ण और कंवल रहे, मुंह से बडी गर्मी निकले, नाभि गहरी हो जाय और पेशाब बहुत गर्म हो, उसकी भी अवस्था विषम समझिये ।३०दिवा या रात्रिकालीन स्वप्न में अगर कोई आघात करता हो और नीद टूटने पर उसी व्यक्ति फा०. --१६