पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११२७

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११०६ वायुपुराणम् ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२१ ॥२२ दधिकुल्या मधुकुल्या देविका च महानदी | वैतरण्यादिरूपेण व्यक्त आदिगदाधरः विष्णोः पदं रुद्रपदं ब्रह्मणः पदमुत्तमम् | कश्यपस्य पदं दिव्यं द्वौ हस्तौ यत्र निर्गती पञ्चानीनां ददान्यत्र इन्द्रागस्त्यपदे परे । रवेश्च कार्तिकेयस्य कोञ्चमातङ्गयोरपि मुख्यलिङ्गानि सर्वाणि व्यक्ताव्यक्तात्मना स्थितः । आद्यो गदाधरश्चैव व्यक्तः श्रीमान्नगदाधरः ||२० गायत्री चैव सावित्री संध्या चैव सरस्वती | नयादित्यश्चोत्तराको दक्षिणाकोsपि नैमिपः श्वेतार्यो गणनाथश्च वसवोऽष्टौ मुनीश्वराः | रुद्राचंकादशैवाथ तथा सप्तर्षयोऽपरे सोमनाथश्च सिद्धेशः कपर्दोशो विनायकः । नारायणो महालक्ष्मोर्ब्रह्मा श्रीपुरुषोत्तमः मार्कण्डेयेशः कोटीशो ह्यङ्गिरेशः पितामहः | जनार्दनो मङ्गला च पुण्डरीकाक्ष उत्तमः इत्यादिव्यक्तरूपेण स्थितश्चाऽऽदिगदाधरः | हेतिर्यो राक्षसस्तस्मिन्हतो विष्णुपुरं गतः ब्रह्मणा सह रुद्राद्यैः कारिते निश्चलेऽसुरे | तुष्टावाऽऽद्यनदापाणि वेधा हर्षेण निर्वृतः ब्रह्मोवाच ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ गदाधरं व्यपगतकालकल्मषं गयागतं विदितगुणं गुणातिगम् । गुहागतं गिरिवरगौरगेहगं गणाचितं वरदमहं नमामि ॥२७ दषिकुल्या, मधुकुल्या, देविका, महानदी, वैतरणी प्रभृति के रूप में आदि गदाधर भगवान् व्यक्त है ।१४-१७॥ विष्णुपद, रुद्रपद, उत्तम ब्रह्म पददिव्य गुण युक्त कश्यप पद जहां पर दो हाथ निकले हुए हैं, पंचाग्नियों के पद, इन्द्र एवं अगस्त्य के पद, सूर्य, कार्तिकेय क्रौञ्च, मातङ्ग, एवं अन्यान्य प्रमुख लिङ्ग - ये सभी वहाँ व्यक्ताव्यक्त स्वरूप में उपस्थित हैं, आदि गदाधर भगवान् स्वयमेव इन स्वरूपों से व्यक्तरूप में विराजमान है |१८-२०१ गायत्री, सावित्री, सन्ध्या, सरस्वती, गयादित्य, उत्तराकं, दक्षिणार्क, नैमिष, श्वेतार्क गणनाथ, नाठों वसुगण, मुनीन्द्रगण, ग्यारह रुद्रगण, सातो ऋषिगण, सोमनाथ, सिद्धेश, कपर्दीश, विनायक, नारायण, महालक्ष्मी, ब्रह्मा, श्री पुरुषोत्तम, मार्कण्डेयेश कोटीश, अजिरेश, पितामह, जनार्दन मङ्गला, पुण्डरीकाक्ष, इत्यादि स्वरूप से यदि गदाधर भगवान् विराजमान हैं। वह हेति नामक राक्षस, जिसकी कथा ऊपर कही जा चुकी है, मृत्यु के उपरान्त भगवान् विष्णु के लोक में पहुँचा | गयासुर के निश्चल कर देने पर ब्रह्मा समेत रुद्रादि देवगण परम हषित हुए और आदि गदाधर की इस प्रकार सब लोगों ने मिलकर स्तुति की ।२१-२६॥ ब्रह्मा बोले- - गया क्षेत्र में विराजमान, सभी गुणों से परे, प्रशस्त गुणशाली समस्त काल चक्रों एवं पापों से विहीन, गुणों द्वारा सुपूजित, गदा धारण करने वाले, गिरिराज की हिमाच्छादित गुहा में विराजमान