पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०९५

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२०७४ वायुपुराणम् आसुरेणैव भावेन असुरानसृजत्पुरा | सौमनस्येन भावेन देवान्सुमनसोऽसृजत् गयासुरोऽसुराणां च महावलपरानमः | योजनानां सपादं च शतं तस्योच्छ्रयः स्मृतः स्थूलः षष्टिर्योजनानां श्रेष्ठोऽसौ वैष्णवः स्मृतः । कोलाहलं गिरिवरे तपस्तेपे सुदारुणम् वहुवर्षसहस्राणि निरुच्छ्वासं स्थिरोऽभवत् । तत्तपस्तापिता देवाः संक्षोभं परमं गताः ब्रह्मलोकं गता देवाः प्रोचुस्तेऽथ पितामहम् । गयासुराद्रक्ष देव ब्रह्मा देवांस्ततोऽब्रवीत् व्रजाम: शंकरं देवा ब्रह्माद्याश्र्व गताः शिवम् | कैलासे चाब्रुवन्नत्वा रक्ष देव महासुरात् ब्रह्माद्यानब्रवोच्छंभुर्ब्रजामः शरणं हरिम् । क्षीराव्धौ देवदेवेशः स नः श्रेयो विधास्यति ॥ ब्रह्मा महेश्वरी देवा विष्णुं नत्वा प्रतुष्टुवुः देवा ऊचुः ॐ नमो विष्णवे भर्त्रे सर्वेषां प्रभविष्णवे | रोचिष्णवे जिष्णवे च राक्षसादिग्रसिष्णवे ॥३ ॥४ ॥५ ॥६ ॥७ 115 ॥ ॥१० असुरों की तथा उदार भावों से देवताओं को उत्पत्ति की थी। उन असुरों में महावलवान् तथा पराक्रमी गयामुर हुआ । उसकी ऊँचाई सवा सो योजनों को सुनी जाती है। मोटाई साठ सहस्र योजनों की थी। भगवान् विष्णु का वह भक्त था । कोलाहल नामक सुन्दर गिरि पर जाकर उसने परम दारुण तपस्या की थी। सुना जाता है कि वहाँ जाकर अनेक सहस्र वर्षों तक श्वास को रोक कर स्थित रहा। उसके इस दारुण तप देखकर देवगण बहुत सन्तप्त और क्षुब्ध हुए । अन्ततः देवगण ब्रह्मलोक में स्थित पितामह ब्रह्मा के पास जाकर वोले, देव ! गयासुर से हम लोगो की रक्षा कीजिए । देवताओं को आतं वाणी सुनकर भगवान् ब्रह्मा ने उनसे कहा |२-७॥ देवगण ! चलिए, इस कार्य के लिए हम लोग एक साथ शंकर के पास चलें | ऐसा निश्चय कर ब्रह्मादि देवगण कैलाश शिखर पर अवस्थित शंकर के पास गये और बोले देव महासुर गय से हम लोगों को रक्षा कोजिये । शम्भु ने ब्रह्मादि देवगणों से कहा चलिये, हम लोग इस कार्य के लिये हरि की शरण में चलें । क्षीर सागर में वे देव देवेश विराजमान हैं, वे ही लोगो का कल्याण साधन करेंगे। इस प्रकार निश्चय कर ब्रह्मा, महादेव एवं देवताओं ने क्षीर सागर में जाकर भगवान् विष्णु को नमस्कार कर स्तुति की ५-६ देवताओं ने कहा - जो समस्त जीवों के उत्पत्तिकर्ता एवं पालक हैं, परम शोभा शाली एवं विजयी है राक्षसादि अनुपकारियों के ग्रसनेवाले हैं, अखिल चराचर जगत् के धारण करनेवाले, एवं योगियों के उद्धारक