पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०७६

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चतुरंधिकशततमोऽध्यायः अष्टादश पुराणानि सेतिहासानि चानघ । उपनमोपसंहारविधिनोक्तानि कृत्स्नशः चतुर्दशसहस्रं च मात्स्यं प्रोक्तमतिस्फुटम् । तत्संख्याकं भविष्यं च प्रोक्तं पश्वशताधिकम् मार्कण्डेयं महारभ्यं प्रोक्तं नवसहस्रकम् । कथितं ब्रह्मवैवर्तमष्टादशसहस्रकम् शतोत्तरं च ब्रह्माण्डं सूर्यसंख्यासहस्रकम् । अथ भागवतं दिव्यसष्टादशसहस्रकस् सहस्राणि दशैवोक्तं पुराणं ब्रह्मनासकम् | अयुतश्लोकघटितं पुराणं वामनाभिधम् तथैवायुतसंख्यातं षट्शताधिकमादिकम् | त्रयोविंशतिसाहस्रमनिलं तद्गतं शुभम् त्रयोविंशतिसाहस्रं नारदीयमुदाहृतम् । एकोनविंशसाहस्रं वैनतेयमुदाहृतम् सहस्रपञ्चपञ्चाशत्प्रोक्तं पाद्मं सुविस्तरम् | सप्तदशसहस्रं तु कूर्मं प्रोक्तं मनोहरम् चतुर्विंशतिसाहलं शौकरं परमाद्भुतम् । एकाशीतिसहस्राणि स्कन्दमुक्तं सुविस्तृतम् एवमष्टादशोक्तानि पुराणानि बृहन्ति च । पुराणेष्वेषु वहवो धर्मास्ते विनिरूपिताः रागिणां च विरागाणां यतीनां ब्रह्मचारिणाम् | गृहस्थानां वनस्थानां स्त्रीशूद्राणां विशेषतः ब्राह्मणक्षत्रियविशां ये च संकरजातयः | गङ्गाद्या या महानद्यो यज्ञव्रततपांसि च ॥२ ॥३ ॥४ ॥५ ॥७ ॥८ ॥ ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ को इतिहास, उपक्रम एवं उपसंहारादि समेत हम लोगों को सम्पूर्णतया बतला चुके । अत्यन्त स्पष्ट रीति से आप ने चौदह सहस्र इलोकों में वर्णित मात्स्य महापुराण को बतलाया, उतनी ही संख्या वाले भविष्य महापुराण को भी आपने बतलाया, भविष्य में मत्स्य की अपेक्षा पाँच सौ श्लोक अधिक हैं। उसके बाद आपने परम रमणीय नव सहस्र श्लोकों में पूर्ण मार्कण्डेय पुराण का वर्णन किया |१-४३। उसके उपरान्त अठारह सहस्र सहस्र ब्रह्मवैवर्त का वर्णन आपने किया । बारह सहस्र एक सौ श्लोकों का ब्रह्माण्ड पुराण, अठारह सहस्र श्लोकों का भागवत महापुराण, दस सहस्र इलोको का ब्रह्म पुराण, दस सहस्र श्लोकों का वामन पुराण, छः सौ अधिक दस सहस्र श्लोकों का आदि पुराण, तेईस सहस्र (?) श्लोकों का वायुपुराण, तेईस सहस्र का नारदीय पुराण, उन्नीस सहस्र का वैनतेय (गरुड ) पुराण, पचपन सहस्र का पद्म पुराण, सत्रह सहस्र का मनोहर कूर्म पुराण, चौबीस सहस्र परमाद्भुत कथाओं सुगुंफित शोकर ( वाराह) पुराण, परम विस्तृत इक्यासी सहस्र श्लोकों में ग्रथित स्कन्द पुराण आपने बतलाया । इस प्रकार परम विस्तृत अठारह पुराणों का ग्रांन आप ने किया । उन पुराणों मे बहुतेरे धर्मों का निरूपण किया गया है ॥५-११॥ रागी, विरागी, यती, ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, स्त्री, शूद्र, विशेषतया ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, अन्यान्य संकर वर्ण द्वारा विधेय धर्मों का उनमें वर्णन है। गंगा आदि महान् नदियों एवं विविध प्रकार के यज्ञों, तपों एवं व्रतों के नियम उनमें वर्णित है। अनेक प्रकार के दान, यम, नियम, योग धर्म, सांख्य धर्म, भागवत