पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०४९

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१०२८ वायुपुराणम् ॥३३० व्याप्य ज्योत्स्नेव खं चन्द्रं विन्यस्ता विश्वरूपिणा | विभूतिर्भ्राजते यथं देवदेवस्य वेश्मनि ॥३२६ महादेवस्य तुल्यानां रुद्राणां तु महात्मनाम् । तत्सर्वं निखिलेनेदं वक्त्रादमृतनिलवम् अपीत्वा (?) खलु सर्वस्य भक्तचाऽस्माभिस्तु सुव्रताः | नास्ति किंचिदविज्ञेयमन्यच्चैवानुगामिनः ॥ प्रश्नं देववर प्राण यथावद्वक्तुमर्हसि ॥३३१ सूत उवाच स खलूवाच भगवानिक भूयो वर्तयाम्यहम् । किं सया चैव वक्तव्यं तद्वदिष्यामि सुव्रताः ॥३३२ ॠषय ऊचु: आदित्याः परिपार्श्वयाः सिंहा वै क्रोधविक्रमाः । वैश्वानरा भूतगणा व्याघ्राश्र्वानुगामिनः ||३३३ अभूतसंप्लवे घोरे सर्वप्राणभृतां क्षये । किमवस्था भवन्त्येते तनो ब्रूहि यथार्थवत् ॥३३४ "एते ये वै त्वया प्रोक्ताः सिंहव्याघ्रगणैः सह । ये चान्ये सिद्धिसंप्राप्ता सातरिश्वा जगाद ह ॥३३५ द्वारा उपभुक्त होती हैं |३२५-३२८१ जिस प्रकार चन्द्रिका समस्त आकाग एवं चन्द्रमा में व्याप्त रहती है, उसो प्रकार विश्वरूपी भगवान् द्वारा विन्यस्त विभूति उनके उस सुंदर प्रासाद में सर्वत्र व्याप्त रहती है। ऐसे सर्वशक्ति सम्पन्न महादेव के समान ही पराक्रमशाली एवं महात्मा रुद्रों को भी शक्ति है । वह सारी कथा आपके मुख से अमृत की धारा की भाँति हम सबों ने भक्ति पूर्वक पान की है, और उससे हम सब को परम तृप्ति का लाभ हुआ है । उसे मुनने के उपरान्त अव कुछ भो सुनना शेष नही रह गया है । हे देववरों के प्राण ! इसके उपरान्त आप हमारे एक अन्य प्रश्न का उत्तर देने की कृपा करें ! ।३२६-३३१। सूत वोले- ऋषिवृन्द ! नैमिषारण्यवासी ऋषियों को इस विनीत वाणी को सुनकर भगवान् वायु ने कहा, सद्व्रतपरायण ऋषिगण ! अब आप को क्या बतलाऊं, मुझे क्या कहना है ? |३३२| ऋषियों ने कहा – भगवन् वायुदेव ! भगवान् शंकर के पार्श्वभाग में अवस्थित आदित्य उनके क्रोध के मूर्तरूप वे सिंहगण, वैश्वानरगण, भूतगण, अनुगामी व्याघ्रवृन्द तथा उनके साथ अन्य जिन सिद्धि प्राप्त करनेवालो को चर्चा आपने ऊपर की है - वे सब उस सर्वप्राणिविनाशक घोर महाप्रलय में किस अवस्था को प्राप्त होते है, आप यथार्थवेत्ता हैं, इस बातको यथार्थतः बतलाने को कृपा करें । मातरिश्वा

  • इत आरभ्य शृण्वतामित्यन्तगन्थो ग. पुस्तके न विद्यते ।