पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०४५

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१०२४ वायुपुराणम् 1 भगवन्सर्वभूतानां प्राण सर्वत्रग प्रभो । के ते सिंहमहाभूताः क्व ते जाताः किमात्मका: सिंहाः केनापराधेन भूतानां प्रभविष्णुना | वैश्वानरमयैः पाशैः संरुद्धास्तु पृथक्पृथक् तेषां तवचनं श्रुत्वा वायुर्वाक्यं जगाद । यद्वै सहस्रं सिंहानामीश्वरेण महात्मा ॥ व्यपनीय स्वकाद्देहात्नोधास्ते सिंहविग्रहाः भूतानामभयं दत्त्वा पुरा बद्धाग्निबन्धने | यज्ञभागनिमित्तं च ईश्वरस्थाऽऽज्ञया तदा तेषां विधानसुक्तेन सिंहेन केन लीलया | देव्या मत्युं कृतं ज्ञात्वा हतो दक्षस्य स क्रतुः निःसृता च महादेव्या महाकाली महेश्वरी । आत्मनः कर्मसाक्षिण्या भूतैः सार्धं तदाऽनुगैः स एष भगवान्क्रोधो रुद्रावासकृतालयः | वीरभद्रोऽप्रमेयात्मा देव्या मन्युप्रमार्जनः तस्य वेश्म सुरेन्द्रस्य सर्वगुह्यतमस्य वै । संनिवेशस्त्वनौपम्यो मया वः परिकीर्तितः अतः परं प्रवक्ष्यामि ये तत्र प्रतिवासिनः । ] रम्ये पुरवरश्रेष्ठे तस्मिन्वैहाय भूमिषु नानारत्नविचित्रेषु पताकाबहुलेषु च । सर्वकामसमृद्धेषु वनोपवनशोभिषु ॥२६३ ॥२६४ ॥२६५ ॥२६६ ॥२६७ ॥२६८ ॥२६६ ॥३०० ॥३०१ ॥३०२ षारण्य निवासी ऋषिगण परम विस्मय विमुग्ध हो गये और बोले- समस्त जीवधारियों के प्राण ! सर्वत्र गमन करनेवाले ! महामहिमामय भगवन् वायुदेव ! वे महान् पराक्रम शाली सिंह कौन हैं ? वे कहाँ उत्पन्न हुए ? उनका स्वरूप कैसा है ? परम प्रभाव शाली भगवान् शंकर ने उन सिंहों को किस अपराध के कारण अग्निमय पाशों में बाँध कर पृथक्-पृथक् कर रखा है |२८९-२९४ | ऋषियों को इस बात को सुनकर वायु बोले, ऋषि गण ! वे एक सहस्र सिंह, जिनकी महात्मा भगवान् शंकर ने अपने शरीर से अलग करके सृष्टि की है, उनके क्रोध के मूर्त रूप है, जीवों को अभयदान देकर उन्होंने उन सब को अग्नि के पाशों में बांध रखा है। प्राचीन काल में दक्ष प्रजापति के साथ यज्ञभाग के सम्बन्ध में विरोध होने पर भगवान् की आज्ञा से उन सहस्र सिंहों में से केवल एक सिंह छूटा था, जिसने महादेवी उमा के अमर्ष को देखकर लोला पूर्वक दक्ष के यज्ञ का सर्वाशत; विनाश कर दिया था। उस समय महादेवी के शरीर से महेश्वरी महाकाली अपने कर्मों की साक्षिणी होकर अपने अनुचर भूतगणों के साथ प्रादुर्भूत हुई थी । रुद्र के उक्त आवास स्थल में निवास करने वाले भगवान् क्रोध ही तथोक्त वीर भद्र है, जो देवी के अमषं को दूर करने के लिये अति भीषण शरीर धारण कर प्रादुर्भूत हुए। परम गोपनीय सुरेश्वर शंकर के उक्त प्रासाद का सविस्तार वर्णन आप लोगों से कच चुका, उसके समान कोई अन्य प्रासाद नहीं है, समस्त त्रैलोक्य में वह अनुपम है |२६५-३००१ इसके बाद उक्त पुरी में अवस्थित अन्य वस्तुओं एवं व्यक्तियों का वर्णन कर रहा हूँ । अन्तरिक्ष में अवस्थित उस परमरम्य शिवपुरी में अनेक सुन्दर प्रासाद बने हुए है, जो विविध प्रकार के रत्नों से चित्रित एवं जटित 7