पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०४१

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१०२० वायुपुराणम् तासां सहस्रशश्चान्याः पृष्ठतः परिचारिकाः । रूपिण्यश्व श्रिया युक्ताः सर्वाः कमललोचना: लीलाविलाससंयुक्तैर्भावरतिमनोहरैः । गणैस्ताः सह मोदन्ते शैलाभेः पावकोपमैः कुब्जा वामनिकाश्चैन वरगात्रा ह्याननाः । पुण्ड्राश्च विकटाश्चैन करालाश्चिपिटानना: लम्बोदरा हस्वभुजा विनेत्रा ह्रस्वपादिकाः । मृगेन्द्रवदनाश्चान्या गजवक्त्रोदरास्तथा गजाननास्तथैवान्याः सिंहव्याघ्राननास्तथा । लोहिताक्षा महास्तन्यः सुभगाश्चारुलोचनाः हस्वकुश्चितशकेशश्च सुन्दर्यश्चारुलोचनाः | अन्याश्च कामरूपिण्यो नानावेषधराः स्त्रियः अभ्यन्तरपरिस्कन्धा देवावासगृहोचिताः | X रराम भगवांस्तत्र दशवाहुर्सहेश्वरः नन्दिना च गणैः सार्धं विश्वरूपैर्महात्मभिः । तथा रुद्रगणैश्चापि तुल्यौदार्यपराक्रमैः पावकात्मजसंकाशैर्यूपदंष्ट्रोत्कटाननैः । वन्द्यमानो विमानश्च ( स्थैः ) पूज्यमानश्च तत्परैः ॥२५८ ॥२५६ ॥२६० ॥२६१ ॥२६२ ॥२६३ ॥२६४ ॥२६५ ॥२६६ जो सर्वदा उनका अनुगमन करती हैं। वे सव भी कमल के समान मनोहर नेत्रोंवाली स्वरूपवती एवं शोभाशा- लिनी रहती हैं। परम मनोहर लीला एवं विलास की भावनाओं से ओत-प्रोत, पर्वत के समान भोषणाकार अग्नि के समान जाज्वल्यमान एवं तेजस्वी गणों के साथ वे परिचारिकाएँ आनन्द का अनुभव करती हैं, उन परिचारिकाओं मे कुछ कुबडी हैं, कुछ वामनाकृत हैं, किसी का शरीर बहुत सुन्दर है, पर मुख घोड़े के समान है। कुछ गन्ने के समान पतली और लम्बी पर स्वभाव से बड़ी विकट, कुछ देखने में महा कराल, कुछ चिपटे मुख वाली, कुछ लम्बे पेटों वाली, कुछ छोटे हाथों वाली, कोई नेत्र विहीन, कोई छोटे- चरणों वाली, कुछ सिंह के समान कटि वाली, कोई हाथी के समान भीषण मुख और उदर वाली, कुछ वैसे ही हाथी के समान मुख वाली, कुछ सिंह और बाघ के समान मुखवाली हैं। उनमें किसी के नेत्र बहुत लाल हैं तो कोई लम्बे-लम्बे विशाल स्तनों के भारों से दुःखो हैं । इनके अतिरिक्त कुछ बहुत ही सुन्दर एवं चित्ताकर्षक नेत्रों वाली भी हैं |२५८-२६२ | उन परम सुन्दरियों के केश बहुत छोटे और घुंघराले होते हैं । उनके नेत्र चित्त को आकृष्ट कर लेते हैं। अन्यान्य सुन्दरी स्त्रियाँ नाना प्रकार की वेश-भूषा से सुसज्जित होकर वहीं पर विराजमान रहती हैं। वे अपनी इच्छा के अनुरूप स्वरूप धारण करने वाली है । उस विशाल महाप्रसाद के भीतरी भाग में वे सुन्दरियाँ सर्वथा विचरण किया करती हैं, वे सचमुच देवस्थानों में निवास करने योग्य है । उस सुन्दर विशाल प्रासाद में दशवाहु भगवान् महेश्वर क्रीडा करते है । उनके साथ नन्दोश्वर एवं महान् पराक्रमशालो विश्व रूप धारण करने में सक्षम उनके गण निवास करते है | रुद्रगण भगवान् के समान ही उदार एवं पराक्रमशाली है । वे आकृति में अग्नि पुत्र की भाँति परम X अत्र परस्मैपदमार्व॑म् ।