पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०३८

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एकशततमोऽध्यायः १०१७ ॥२३१ ॥२३२ 1 ॥२३३ ॥२३४ तद्विग्रहवतः स्थानमीश्वरस्यामितौजसः । शिवं नाम पुरं तत्र शरणं जन्मभीरुणाम् सहस्राणां शतं पूर्ण योजनानां द्विजोत्तमाः । अभ्यन्तरे तु विस्तीर्णं महीमण्डलसंस्थितन् मध्याह्लार्कप्रकाशेन परतेजोभिर्मादना | शान्तकौम्मेन महता प्रकारेणार्कवर्चसा द्वारैश्चतुभिः सौवर्णैर्मुक्तावामविभूषितैः । तपनीयनिभैः शुभ्रंगढं सुकृतवेष्टनम् तच्चाऽऽकाशे पुरं रम्यं दिव्यं घण्टानिनादितम् |[ ÷न तत्र क्रमते मृत्युर्न तापो न जरा श्रमः ॥२३५ नददन्ये: पुशचारं रूपमासौतुमर्हति ( ? ) | सहस्राणां शतं पूर्ण योजनानां दिशो दश तत्पुरं गोवृषाङ्कस्य तेजसा व्याप्य तिष्ठति । भावेन मानसो सूमिविन्यस्ता कनकामयी रत्नवालुकया तत्र विन्यस्ता शुशुभेऽधिकम् | शारदेन्दुप्रकाशानि बालसूर्यनिभानि च अर्धश्वेतार्धरक्तानि सौन्दर्णानि तथैव च | रथचक्रप्रमाणानि नालैर्मरकतप्रभैः ॥२३६ ॥२३७ ॥२३८ ॥२३६ 1 से ख्यात है । वह उस परम तेजस्वी ईश्वर का शिव नामक पुर है, जिसमें पुनर्जन्मादि से भीत होने वाले महापुरुषों का निवास है। द्विजवर्य्य वृन्द ! वह शिव नामकपुरी सो सहस्र योजनों में विस्तृत है। इसका अन्तर्वर्ती भाग पृथ्वी मण्डल जितना विस्तीर्ण है |२२८-२३२। इस महापुरी के चारो ओर मध्याह्न कालीन भास्कर की भाँति परम तेजस्वी, अन्यान्य तेजस्वी पदार्थों के तेब को मलिन कर देने वाली सुवर्ण निर्मित महान् चहारदीवारी सुशोभित है | उसकी चमक चारों ओर सूर्य के समान चकाचौष करती रहती है । उस महान् पुरी में चार द्वार हैं, जो सुवर्ण से निर्मित हैं । मोतियों की लड़ियाँ उनकी शोभावृद्धि करती हैं, वे परम शुभ्र एवं शोभा सम्पन्न हैं | उस मनोहर पुरी के चारों ओर एक अन्य रक्षा दीवाल भी खड़ी है, जो परम पुष्ट है । आकाश में वह परम सुशोभित पुरी दिव्य घंटाओ के सुरंम्य नादों से कूजित रहती है । उस पुरी में न तो वृद्धावस्था का कोई भय रहता है न मृत्यु का कोई आतङ्क | परिश्रम भी नहीं खलता । समस्त त्रैलोक्य में ऐसी कोई पुरी नहीं है, जिसकी शोभा को उस रम्य पुरी की सुन्दरता अनुकरण करे अर्थात् वैसी सुरम्य पुरी त्रैलोक्य मे अन्यत्र कहीं नहीं है । दसों दिशाओं में उसका परिमाण एक लाख योजन है । भगवान् वृषभध्वज महेश्वर की वहं पुरी अपने तेजोबल से अवस्थित है । उस सुवर्णमयी पुरी की सृष्टि मानसिक भाव भूमि पर हुई है |२३३-२३७। रत्नों की बालुका से विन्यस्त उस परम रम्य नगरी की शोभा अधिक बढ़ जाती है। शरदपूर्णिमा के चन्द्रमा के समान सुप्रकाशमय, प्रातः कालीन सूर्य की भाँति मनोहर एवं तेजोमय, आधे श्वेत आधे लाल सुवर्णनिर्मित रथ के चक्कों के समान गोलाकार दिव्य पद्म उस पुरी में शोभायमान है | वे पद्म अपनी

धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ग. पुस्तके नास्ति |

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