पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०३४

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एकशततमोऽध्यायः वायुरुवाच न शक्या जन्तवः कृत्स्नाः प्रसंख्यातुं कथंचन | अनाद्यन्ताश्च संकीर्णा ह्यप्यून व्यवस्थिताः || गणना विनिवृत्तैषामानन्त्येन प्रकीर्तिताः न दिव्यचक्षुषा ज्ञातुं शक्या ज्ञानेन वा पुनः । चक्षुषा वै प्रसंख्यातुमतो ह्यन्ते नराधिपाः अनाव्यानादवेद्यत्वात्न॑व प्रश्नो विधोयते । ब्रह्मणा संज्ञितं यत्तु संख्यया तन्निबोधत यः सहस्रतमो भागः स्थावराणां भवेदिह | पार्थिवाः किमयस्तावत्संसेकाद्येषु संभवः संसेकज्ञानाभावेन सहस्त्रेणैव संमिताः | औदका जन्तवः सर्वे निश्चयात्तद्विचारितम् सहस्रेणैव भावेन सत्त्वानां सलिलौकसाम् । विहंगमास्तु विज्ञेया लौकिकास्ते च सर्वशः यः सहस्रतमो भास्तेषां वै पक्षिणां भवेत् । पशवस्तत्समा ज्ञेया लौकिकास्तु चतुष्पदाः चतुष्पदानां सर्वेषां सहस्रेणैव संमताः | भागेन द्विपदा ज्ञेया लौकिकेऽस्मिस्तु सर्वशः यः सहस्रतमो भागो भागे तु द्विपदां पुनः । धार्मिकास्तेन भामेनं विज्ञोयः संसिताः पुनः १०१३ ॥१६५ ॥१६६ ॥१६७ ॥१६८ ॥१६६ ॥२०० ॥ २०१ ॥२०२ ॥२०३ वायु बोले- ऋषिवृन्द ! उन समस्त प्राणियों की संख्या बलताना किसी प्रकार भी हमसे सम्भव नही है । उनका प्रवाह अनादि है, अनन्त है, वे इतने परस्पर सङ्कीर्ण है कि केवल अनुमान या तर्क से विचार किया जा सकता है । उनकी गणना किसी प्रकार भी सम्भव नही है, वे अनन्त हैं—ऐसा हो उनके विषय में कहा जाता है | दिव्य दृष्टि अथवा परम ज्ञान द्वारा भी उनको निश्चित संख्या नही जानी जा सकती। अतः हे नर श्रेष्ठ वृन्द ! मैं उनकी निश्चित संख्या इस चर्म चक्षु से किस प्रकार बतला सकते हैं । जो अचिन्तनीय एवं सर्वथा अज्ञात है- ऐसे प्रश्न को नहीं करना चाहिए | ब्रह्मा ने इस विषय में जो सामान्यतया जातिगत संख्याएं निश्चित को हैं, उसे सुनिये । इस संसार में स्थावर जीवों का जो सहस्रतम भाग है संख्या में उतने ही पार्थिकृमि है, जो संसेक आदि से उत्पन्न होते है | इन संसेकज जन्तुओं का सहस्रतम भाग जितना होता है, उतने समस्त जलीय जन्तु होते हैं, यह भलीभांति निश्चित एवं सुविचारित मत है १९५-१६६ इन जलनिवासी जन्तुओं का सहस्रतम भाग लौकिक विहङ्गमों की संख्या के बराबर है। उन लौकिक विहङ्गमों का सहस्रतम भाग जितना होता है उतना ही संख्या में समस्त चतुष्पद जीव होते हैं | उन समस्त चतुष्पदों का सहस्रतम भाग जितना होता है, उतने हो संख्या में द्विपद ( मनुष्य ) होते हैं । पुनः इन द्विपदों का जो सहस्रतम भाग होता है. उतने ही संख्या में सम्मान- नौय धार्मिक विचार वाले सत्पुरुष होते है। इन धार्मिकों का सहस्रतम भाग जितना होता है उतने स्वर्गीय