पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०२

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

दंशमौऽध्यायः ८३ अथ दशमोऽध्यायः नन्वन्तरवणनम् सत उक्च एवंभूतेषु लोकेषु ब्रह्मणा लोककर्तृणा । यद ता न प्रवर्तन्ते प्रजाः केनापि हेतुना १ तमोमात्रावृतो ब्रह्मा तदाप्रभृति दुःखितः । ततः स विदधे बुद्धिर्थनिश्चयगामिनीम् २ अथाऽऽमनि समस्राक्षीत्तमोमात्रां नियामिकाम् । राजसस्वं पराजित्य वर्तमानं च धर्मतः । ३ तप्यते तेन दुःखेन शोकं चक्रे जगत्पतिः । तमश्च व्यनुदत्तस्मात्तद्रजस्तमसावृणोत् ४ तत्तमः प्रतिनुत्तं वै मिथुनं स व्यजायत । अधर्मचरणाज्जज्ञे हिंसा शोकादजायत ५ ततस्तस्मिन्समुझते मिथने चरणानि । ततश्च भगवानासीत्प्रीतश्चैवशिश्रियत् ६ स्वां तनू स ततो ब्रह्मा तामपो (प)हंदभास्वराम् । द्विधऽकरोत्स तं देहमर्जुनपुरुषोऽभवत् ॥७ अर्धेन नारी सा तस्य शतरूपा व्यजायत । प्रकृतां भूतधात्रीं तां कामान्वै सृष्टवान्विभुः ८ सा दिवं पृथिवीं चैव महिम्ना व्याप्य धिष्ठिता । ब्रह्मणः सा तनुः पूर्वादिदवृत्य तिष्ठति । & या त्वर्धात्सृजते नारी शतरूपा व्यजायत । स देवी नियुतं तप्त्वा तपः परमदुश्चरम् १० अध्याय १० सूत जी योले-लोककर्ता ब्रह ने इस प्रकार समस्त प्रजाओं की सृष्टि की; किन्तु किसी कारण वे प्रजागण विधिनिदष्ट पथ में प्रवृत्त नहीं हुये १। इससे ब्रह्मा तमोगुण से आच्छन्न हो गये और दुखी रहने लगे । तब उन्होंने इष्टसिद्धि का उपाय सोच निकाला और अपने में तामसी शक्ति की सृष्टि की। प्रजा- गण राजस भाव को छोड़कर सत्त्वगुणावलम्बी होकर सन्तप्त हो रहे हैं, यह देखकर जगत्पति पुनः शोक करने लगे। तब उन्होने तमोभाव को छोड़कर रजोगुण का अवलम्बन किया । उस रजोगुण ने उनके तमोगुण को ढक लिया। उस परित्यक्त तमोगुण से एक मिथुन की उत्पत्ति हुई । ब्रह्मा के चरण से अधर्म और शोक से हिंसा का जन्म हुआ । इससे प्रह्मा अत्यन्त आनन्दित हो गये। अपने उस मलिन शरीर की मलिनता को ब्रह्मा ने दूर कर उसें देह को दो भागो में विभक्त किया, जिसमें एक भाग पुरुष हो गया और दूसरा स्त्री ॥२-७ उस स्त्री का नाम शतरूपा पड़ा। उस प्राऊत और जीवों को धारण करने वाली देवी को ब्रह्मा ने सृष्टि कामना से उत्पन्न किया ।८। उसने अपनी महिमा से द्यावापृथिवी को व्याप्त कर लिया । गगनव्यापिनी उस ब्रह्म तनु ने, जो ब्रह्मा के ओधे शरीर से उत्पन्न हुई थी । और जिसका नाम शतरूपा 'पंड़ा था; नियुत वर्षों तक