पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०१०

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शततमोऽध्यायः तदा बद्धमिदं ज्ञानं संज्ञा या ह्यपलक्ष्यताम् । कलानां सुपरीमाणात्काल इत्यभिधीयते यदहर्ब्रह्मणः प्रोक्तं दिव्या कोटी तु सा स्मृता | शतानां च सहस्राणि दश द्विगुणितानि च ॥ + नवतिं च सहस्राणि तथैवान्यानि यानि तु तु एतच्छु त्वा तु ऋषयो विस्मयं परमाद्भुतम् । संस्थासंभजनं ज्ञानमपृच्छन्नन्तरं तदा ऋषय ऊचुः ॥२२८ ॥२२६ संख्याप्रलयमात्रं तु मानुषेणैव संमतम् । मानेन श्रोतुमिच्छामः संक्षेपार्थपदाक्षरम् तेषां श्रुत्वा स देवस्तु वायुर्लोकहिते रतः । संक्षेपाद्दिव्यचक्षुष्मान्प्रोवाच भगवान्प्रभुः एते रात्र्यहनो पूर्व कीर्तिते विह लौकिके । तासां संख्याय वर्षाग्रं ब्राम्यं वक्ष्याम्यहः क्षये ॥२३० कोटीशतानि चत्वारि वर्षाणि मानुषाणि तु । द्वात्रिंशच्च तथा कोटयः संख्याताः संख्यया द्विजैः ॥ तथा शतसहस्राणि एकोननवतिः पुनः । अशोतिश्च सहस्राणि एष कालः प्लवस्य तु मानुषाख्येण संख्यातः कालो ह्याभूतसंप्लवः । सप्त सूर्यास्तदाऽग्रेषु तदा लोकेषु तेषु वै महाभूतेषु लीयन्ते प्रजाः सर्वाश्चतुविधाः | सलिलेनाऽऽप्लुते लोके नष्टे स्थावरजङ्गमे ||२३२ ॥२३३ ॥२३४ ६५६ ॥२२५ ॥२२६ ॥२२७ है — ऐसा शास्त्रों का निश्चय है । इसी दिन मान से मास, अयन एवं वर्ष आदि की गणना होती है, ये संज्ञाएँ ब्रह्मा के एक दिन की उपलक्षण मात्र हैं। कलाओं द्वारा परिगणित होने के कारण समय काल नाम से पुकारा जाता है। एक ब्राह्म दिवस एक करोड़ वीस लाख नव सहस्र से अधिक दिव्य वर्षों का होता है । इस कथन से ऋषिवृन्द परम विस्मित हो उठे यह परम अद्भुत बात मालूम पड़ी, काल संख्या विषयक जिज्ञासा को शान्ति के लिए पुनः उस सबों ने पूछा । २२४-२२७। ऋषिगण बोले- हम लोग संक्षेप में मानव मान से- सम्मत संख्या द्वारा प्रलय का परिमाण सुनना चाहते हैं, आप छोटे छोटे पदों में इसका संक्षिप्त परिचय दीजिये | ऋषियों की बात सुनकर लोक हितेषी परम ऐश्वयंशाली भगवान् वायु, जिन्हें दिव्य नेत्र प्राप्त थे, संक्षेप में कथा का प्रारम्भ करते हुए बोले १२२८-२२९। लौकिक दिन रात का प्रमाण मैं आप लोगों को बतला चुका हूँ, उन्हीं के माध्यम से ब्राह्म वर्ष के पूर्व उनके दिवस का परिमाण वतला रहा हूँ | मानव के चार सौ बत्तीस करोड़ उन्यासी लाख अस्सी सहस्र वर्गों मे प्रलय होता है, मानव मान से इतने ही वर्षों बाद प्रलय की अवधि कही गई है । प्रलय के अवसर पर सात सूर्य उदित होते हैं, सभी लोंकों में चारों प्रकार की प्रजाएं महाभूतों में विलीन हो जाती हैं, सारा लोक जल मग्न हो जाता है स्थावर, जंगम, जीव निकाय नष्ट हो जाते हैं | २३०-२३४| संहार कार्य + इतः प्रभृति सार्धंश्लोको नास्ति ख. पुस्तके |