पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१००९

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दै वायुपुराणम् ॥२१८ एतद्ब्राह्ममहर्ज्ञेयं तस्य संख्यां निबोधत। निमेषस्तुल्यमात्रा हि कृतो लध्वक्षरेण तु मानुषाक्षिनिमेषास्तु काष्ठा पश्चदश स्मृता | लवः क्षणास्तु पञ्चैव विशत्काष्ठा तु ते त्रयः प्रस्थ: सप्तोदकाश्चैव साधिकास्तु लवः स्मृतः । लवास्त्रिशत्कला ज्ञेया मुहूर्तस्त्रिशतः कलाः मुहूर्तास्तु पुर्नस्त्रिशदहोरात्रमिति स्थितिः । अहोरात्रं कालानां तु यधिकानि शतानि षट् ताश्चैव संख्यया ज्ञेयं चन्द्रादित्यगतिर्यथा | निमेषा दश पञ्चैव काष्ठास्तास्त्रिशतः कला त्रिशत्कला मुहूर्तस्तु दशभागः कला स्मृता । चत्वारिंशत्कलानां तु मुहूर्त इति संज्ञितः मुहूर्ताच लवाञ्चापि प्रमाणज्ञैः प्रकल्पिताः । तस्थानेनाम्भसा (सां) चापि पलान्यथ त्रयोदश ॥२१६ मागधेनैव मानेन जलप्रस्थो विधीयते । एते वाप्युदफप्रस्थाश्चत्वारो नालिफो घटः हेममाषैः कृतच्छिद्रैश्चतुभिश्चतुरङ्गुलैः । समाहनि च रात्रौ च मुहूर्ता वै द्विनालिकाः रवेर्गतिविशेषेण सर्वेष्वृतुषु नित्यशः । अधिकं षट्शतं पश्व कलानां प्रविधीयते तदहर्मानुषं ज्ञेयं नाक्षत्रं तु दशाधिकम् | सावनेन तु मासेन अब्दोऽयं मानुषः स्मृतः एतद्दिव्य महोरात्रमिति शास्त्रविनिश्चयः । अह्नाऽनेन तु या संख्या मासवंयनवार्षिको ।।२२० ॥२२१ ॥२२२ ॥२२३ ॥२२४ ॥२१३ ॥२१४ ॥२१५ ॥२१६ ॥२१७ के बारे में विस्तार पूर्वक बतला रहा हूँ, सुनिये । एक लघु अक्षर के उच्चारण में जो समय लगता है उसे निमेष कहते हैं, मनुष्य की आंख को झपकी में जो समय लगता है, उसे भी निमेष कहते हैं | ऐसे पन्द्रह निमेषों की एक काष्ठा कही जाती है | पनि क्षण का एक लव होता है, वीस काष्ठा का तीन लव होता है |२१३-२१४१ मतान्तर के साढ़े सात प्रस्थ का एक लव होता है, तीस लव की एक कला होती है, तोस कला का एक मुहूर्त होता है, तीस मुहूर्त का एक दिन रात होता है - एक दिन रात में छ सो दो कलाएँ होती है |२१५-२१६ | इन्ही संख्याओं से चन्द्रमा और सूर्य की गति जाननी चाहिये, पन्द्रह निमेप की एक काष्ठा और तीस काष्ठा को एक कला, तीस कला का एक मुहूर्त होता है, किन्हीं किन्हीं के मत से चालीस कलाओं का एक मुहूर्त होता है । जाननेवालों ने इन सब के यही प्रमाण निश्चित किये हैं । जल द्वारा भी एक प्रकार से परिमाण का निश्चय होता है, मागधमान के अनुसार तेरह पल-जल का एक प्रस्थ होता है, ऐसे चार प्रस्थों का एक नालिक घट होता है | २१७-२२०। एक कलश में चार अंगुलों पर चार सुवर्णभाष के समान छिद्रो द्वारा दिन और रात भर में प्रतिमुहूर्त दो नालिक जल का क्षरण होता है। सूर्य की गति की न्यूनता के रहते हुए भी सभी ऋतुओं में एक दिन रात छ सौ से कुछ अधिक कलाओं वाला होता है । यह दिन मनुष्यों का है, नाक्षत्रिक दिन राति का परिणाम छ सौ दस कलाओं का होता है। यही एक सावन का भी मान है । इस मान से बारह मास का एक मानव वर्ष कहा जाता है |२२१-२२३ | उतना ही एक दिव्य वर्ष का मान से