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१५६) रुद्राष्टाध्यायी - मन्त्रः ।. ॐ शान्तिः शान्तिः सुशान्तिर्भवतु सर्वा रिष्टशान्तिर्भवतु ॥ अनेन रुद्राभिषेककर्म- णा कृतेन श्रीभगवान्भवानीशङ्करमहारुद्रः भीयतां न सम ॥ ॐ सदाशिवार्पणमस्तु || इति स्वस्तिप्रार्थनामंत्राऽध्यायः ॥ माषार्थ-ज्ञान्तिः ३ प्रकारसे शान्ति हो सम्पूर्ण अरिष्टोंकी शान्ति हो इस स्ट्राभिषेकक मैंसे श्रीभगवान् भवानीशङ्कर महारुद्र प्रसन्न हों, मेरा इसमें कुछ नहीं सब शंकरका है, यह शिवनी के अर्पण हो । स्वस्तिप्रार्थना में मन्त्राध्याय पूर्ण हुआ | इति श्रीरुद्राष्टके मुरादाबाद निवासि प० ज्वालाप्रसाद मिश्रकृत सस्कृतार्थ्य- भाषाभाष्यसमन्वितः मन्त्राध्यायः ॥ दोहा। रीशंकर पदकमल, प्रेमसहित हिय लाय । संस्कृत भाषातिलकसह, कोनो रुद्राध्याय ॥ १ ॥ कर प्रेम जो, लोई पदारथ चार ! होय श्रीशंभुकी, जो जगमे सुखसार ॥ २ ॥ संवत् ऋतु ऋतु अंक विधु, मास ञासाद पुनीत | शुकृपक्ष तिथि चौथ शुभ, चन्द्रवार शिवप्रीत ॥ ३ ॥ पूर्ण कियो शुभ ग्रंथ यह, सज्जनकहूँ सुखदान | पढहिं सुनाई कर प्रेम जो, पावहिं मोद महान ॥ ४ ॥ ॥ समाप्तोऽय ग्रन्थः || pte पुस्तक मिलनेका ठिकाना- गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास, " लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर "स्टीम् प्रेस, कल्याण-मुंबई, [ दशमोऽध्यायः । १० ] खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेडटेश्वर” स्टीम प्रेस, खेतवाडी-मुंबई.