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( १९२ ) रुद्राष्टाध्यायी - [ दशमा- ॐ अमिरित्यस्य विश्वेदेव ऋषिः । भुरिग्वाली त्रिष्टुप् छं० । अग्न्यादयो देवताः इष्टकोपधाने वि० ॥ ४ ॥ भाष्यम् - इटके त्वमग्न्यादिदेवता रूपाऽसि तां त्वामुपदधामीति सर्वत्र शेषः । अग्न्या दोनां देवतात्वं प्रसिद्धम् । ता बातो देववेत्येता वे देवताइछन्दासि तान्येपै तदुपदधातीति श्रुतेः । सर्व सुगमम् | [ यजु० १४/२० ] ॥ ४ ॥ भाषार्थ-अग्निदेवता की प्रार्थना करता हुआ, यह इष्टकास्थापन करता हूँ १ वायुदेवताका ध्यान करता हुआ यह इटका स्थापन करता हूँ २ सूर्यदेवताका ध्यान करता हुआ यह इटका स्थापन करता हूँ ३, चन्द्रदेवताका ध्यान करता हुआ यह इसका स्थापन करताहूँ ४, वसु- देवताओंका ध्यान करता हुआ यह इष्टका स्थापन करता हूँ ५, रुद्र देवताओंका ध्यान करता हुआ यह इष्टका स्थापन करताहूं ६, आदित्य देवताओंका ध्यान करता हुआ यह इष्टका स्थापन करताहूं ७, मरुव देवताओं का ध्यान करतादुभा यह इटवा स्थापन करता हूं ८, विश्वदेवादेवताओंका ध्यान करता हुआ यह इष्टका स्थापन करताहूँ ९, बृहस्पतिदेव- ताका ध्यान करताहुआ यह इटका स्थापन करताहू १०, इन्द्रदेवताका ध्यान करता हुआ यह इष्टका स्थापन करताहूं ११, वरुण देवताका ध्यान करता हुआ यह इटका स्थापन करताहूं ॥ १२ ॥ ४ ॥ मन्त्रः । ॐसुद्योजातंर्मपद्यामिसुद्योजाताघुवै नमो नमः ॥ भुवेम॑वे॒नाति॑िभवेभवत्युमांभुवोद्भ वायुनमः ॥ ५ ॥ भाष्यम् - मेधाविनः पुरुषस्य ज्ञानोत्पादनाथ महादेवसम्बन्धिषु पञ्चवक्रेपु मध्ये- पश्चिमवकप्रतिपादकं मन्त्रमाह- (सद्योजाताय ) एवन्नामकं यत्पश्चिमवक्रं तद्रूपं परमे श्वरं (प्रपद्यामि ) प्रामोमि तादृशाय ( सद्योजाताय ) महादेवाय (बै ) ( नमः ) नमोस्तु हे सद्योजात । ( भवेभवे ) तत्तज्जन्मनिमित्तं ( मां ) माम् ( न भवस्व ) न मेर येत्यर्थः । किन्तर्हि ( व्अतिभवे ) जन्मातिलंघननिमित्तं ( भवस्व ) तत्त्वज्ञानाथ प्रेरय ( भवोद्भवाय ) भवात्संसारात् उद्धर्भे सद्योजाताय ( नमः ) नमोऽस्तु ॥ ५ ॥ भाषार्थ-ज्ञानप्राप्तिके निमित्त महादेवसम्बधिपं मुख पश्चिममुख प्रतिपादकमन्त्रका वर्णन करते हैं। सद्योजातनामक परमेश्वर के रूपको प्राप्त होताहू सद्योजात के निमित्त प्रणाम है, हे देव ! अनेक जन्मोंमें मुझे मत प्रेरण करो, किन्तु जन्मके दूर करने के निमित्त तत्वज्ञान के निमित्त मुझे प्रेरण करो । संसारके उद्धारकर्ता सद्योतजातको प्रणाम है ॥ ५ ॥