पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/११०

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ज्याय ६. ] आष्यसहिता | भाषार्थ-हे वक्तगुणसंपन्न महादेव | यह आपका विशेषाख्य भोजन है, देशान्तरको जाते हुए मार्गमें जो तडागादिके समीप बैठकर मोदन आदि क्ष्य खाता है उसे अवस कहते है ) इसके साथ तुम हमारे विरोधियों के निवारण होनसे क्यो उतार हुए धनुषको के अपने पिनाक धनुषको बसमें छिपाये मूजवान नाम पर्वतके परभागवर्ती होकर गमन करो अत इस अपने भागको लेकर दोर्घ गन्तव्यपथ अतिक्रमण पर अपने निवासभूत मुंज- वाद नाम पर्वत के शिखर पर उपस्थित हो अथवा तुम्हारा निरन्तर विस्तृत धनुष है तुम अपने तेजसे स्वर्गपर्यन्त आच्छन्न करके गमन करनेमें समर्थ हो तुमको किसी प्रकारको सहायताको आवश्यकता नहीं ( धनुष छिपाकर जानेका कारण यह कि प्राणी भयभीत न हो अर्थात् रुद्रने अपना धनुष सब उतार लिया ) हे रुद्र | तुम चर्माम्नरपारण किये हो वा सपूर्ण प्राणियों के अन्तर रहनेसे चर्माम्बरधारी हो हमारी हिसा न करते अर्थात् हमारी सन शारीरिक विपर को क्रिम पर रक्षाके अभिप्रायले हमारी पूजा से सन्तुष्ट चा फोपरहित होनेके कारण कल्याण सरूप होकर अपने स्थान में निवास करो वा पर्वतको अतिक्रम परजाओ ॥ ६ ॥ विशेष-शिषके धनुषका नाम पिनाक है गनचर्म धारण करनेसे कृत्तिवास है पौराणिक पदार्थ विद्यावाले कहते है पर्वत के ऊपर मेघोंके उदय होनेसे सदा इन्द्र पनुष देखा जाता है। इस कारण वहाँही स्द्रका निवास स्थान कथन किया है वन में संपूर्ण शरीरशे वर्मान्त- रखती है इस कारण विद्युमें होनेसे कृशिवास और महादेव कहा है ॥ ६ ॥ न्यायुष अमदंम्शेत्कुश्पर्पस्यत्म्पायुषम् ॥ यद्दे॒वेषु॑रूपायु पम्तन्नोऽस्तुल्यायुष ॥ ७ ॐ उपायुपमित्य नारायण ऋऋषिः | उष्णिक छन्दः । रुद्रो देवता | वपनादौ जपे विनियोगः ॥ ७ ॥ भाग्य - (लमः ) मुनेः ( घ्यायुपसू ) त्रयाणां वाल्ययौवनस्थाविराणामायुष समाहारख्यायुपम् । तथा ( कश्यपश्य ) एतनामकस्य प्रजापतेः सम्बन्धि यत् ( व्यापसू) व्यायुपसू तथा ( देवेषु ) इन्द्रादिषु ( यत् ) यत् (व्यायुषम् ) व्यायु- यमरित (तत्) तत्सर्वम् ( व्यायुषर् ) व्यायुपम् (नः ) व्यस्माकं यजमानानाम ( वस्तु ) भूयात् जमदम्यादीनां वाल्यादिषु यादृशं चरितं तादृशो मृयादित्यर्थः । [ यजु० १६२ ] ॥ ७॥ भाषार्थ- है रुद्र | जमदग्नि ऋषिक जो बाल्य यौवन वृद्धावस्था है तथा कश्यप प्रजापतिकी जैसी तीनों अवस्थाएँ है जैसे देषगणकी अवरयाके चरित्र है वह व्याप मुझ यजमा- मको प्राप्त हो अर्थात् इन पूर्वोक्त महात्मामकसे चरित्र हमारे होजायें ॥ ७ ॥