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(९८) रुद्राधान्यायी - [[ पछे- 'करत् ) ज्ञातिषु प्रशस्यतरात् कुर्यात् । ( यथा ) यथा च ( नः ) अस्मान् ( व्यक् साययात् ) सर्वेषु कार्येषु निश्चययुक्तात् कुर्यात् तथैनं जपाम इत्यर्थः । [यजु०३।५८] भाषार्थ-पापियाँको रुलानेवाले तीननेत्र वा मूहक, अन्तरिक्षलोक, झुलोकरूप वा गमन- 'शील वा जिनके नेत्रसे तीनलोक प्रकाशित होते है वा जिनके नेवप्रकाशसे तीन लोक आकृष्ट होते हैं अथवा तीन वेद, तीन काल, आधिवक आध्यात्मिक, आधिभौतिक ही जिनके नेत्र हैंदुऐसे सर्गादि क्रीडा करनेवाले शत्रुजेता प्राणियों में आत्मरूपले वर्तमान द्युतिमान् स्तोत्रांते तिकिये हुए रुद्रदेवकी और देवताओं से पृथक् कर वा उत्कृष्ट जानकर सब दुःख नाश करते है वा उनके लनु हो भन्नभक्षण करते हैं वा त्रिनेत्र जानवर उनको भाग देते हैं जिस- मकार हमको वह उत्तम प्रकारले निवास करने वाले वरें, जिस प्रकार हमको ज्ञातियों में श्रेष्ठतर करै, जिसप्रकार हमको सब कार्यों में निश्चययुक्त करें, इस प्रकार इनका जप करते हैं ( मा- शीर्वाद है ) ॥ ३ ॥ तत्वविचार-जिनकी अम्बिका भगिनी है वह व्यंबक होते हैं, तीन लोक में गमन होने से अम्बिका विद्युदग्निविशेष रुद्रदेवताकी भगिनीस्थानीय है ॥ ३ ॥ भावार्थ-तीनकालों में एकरसरूप परमात्माका भजन करना सबको उचित है यह रुद्ररूप प्रार्थनीय है घनसपत्ति वही देवता है तेजकी वृद्धि वही करता है ॥ ३ ॥ मे॒षु॒जमास भेष॒जङ्गवेश्वयुपुरु॑षायभेष- जम | सुखम्मे॒षाय॑मु॒ण्ण्यै ॥ ४॥ ॐ भेषजमतीत्यस्य वन्धुऋषिः । स्वराङ्गायत्री छन्दः । रुखो देवता । जपे विनियोगः ॥ ४ ॥ माष्यम् - हे रुद्र त्वम् (अपजम्) औषधवत्सर्वोपद्रवनिवारकः ( असि ) सर्वमा• "णिनां हितकारी भवास, अतः प्रार्थयामि, अस्मदीयेभ्यः (गवे ) ( व्यवाय ) ( पुरु वाय) (भेषजम् ) सर्वव्याधिनिवारकत मौषधं देहि (मेषायमेष्ये ) ( सुखम् ) क्षेमं देहीति शेषः । सुहितं वेभ्यः माणेभ्यः इति सुखम् । अनेन मन्त्रेण गृहपशूनां क्षममा. गर्भवति ( यजु० ३१५९ ] ॥ ४ ॥ भाषा - हे रुद्र | आप पत्र संपूर्ण उपद्रवोंके निवारण करनेवाले हो इस कारण हमारे यौ, पोडे, पुत्र, पौत्र, भ्राता और परिजनों के निमित्त सव रोग दूर करनेको औषधि दोश औषधिरूप प्रकाश करो तथा भेष मेषी आदि पशुओं के उपद्रवरहित जीवनके निमित्त सुख- दायक अपना भेषजस्वरूप प्रकाश करो ( इस मंत्र से घरके पशुओंकी क्षेममाप्ति होती है) ४ ॥ विशेष-पदार्थविद्याप ले यहाँ विद्युत्का अर्थ करके कहते हैं कि, विद्युत् कितनी उत्कृष्ट न्मेषन है, यह भेषनके व्यवसायी की विशेष रूप से जान सकतेहै ॥ ४ ॥