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अव्यायः ६० ] माष्यसहिता (९७) भाषार्थ-विरोधियों को पापियोंको, अघर्मियोंको, अन्यायियों को उनके कर्मका फल देकर रुलानेवाले हे रुद्रदेवता । तुम्हारी भगिनी अम्बिकाके साथ यह हमसे दिया हुआ पुरोडाश स्वीकार करने के योग्य है इस पुरोडाशको सेवन करो हे रुद्र 1 हमारे द्वारा अवकीर्ण (पखेरा) हुआ यह पुरोटाश तुम्हारे सेवनीय है तथा आपका चिलमध्य में रहनेवाला भूसा ( चूहा ) रक्षणीय पशु के इस कारण शेषभाग इसको भी देते है ॥ २ ॥ विशेष-आम्पिका नामकी रुद्रकी यहन है, उसके साथ रुद्रदेव विरोधियों के मारने की इच्छा करते हैं, सो इस क्रूरता अम्किा के साथ उसे मारते हैं, वह अम्बिका शरद्रूप ही जरा- दिक उत्पन्न कर उस विरोधीको मारती है, रुद्र अम्बिकाकी उग्रता इस हविसे शान्त होती है। केवल तत्त्ववादी कहते है- मेषगर्जनका आदिकारण विद्युदग्रि विशेष है। अन्ध- काशव्दका प्रकृत अर्थ गमनशील अर्थात जगत है यही शरहरू पसे रुद्रकी भगिनी होकर कार्यसाधन करती है | रुद्राध्याय में मेरा ऋतु आदि भी रुद्रका निवास लिखा है, इससे यह भी हो सकता है मेघनिषीण होनेसे शरत प्राप्त हति, वहीं उनकी भगिनीरूप है, प्राचीन कालमें शरसे ही नवीमवर्ष प्रारभ होताया और एकवर्ष बीतने से शरीर में परिवर्तन होता है वही जरा है। प्रथश दशरद्में वर्षा के उपरान्त एक नवीन ज्वरप्रारम होता है जो वडा कई करता है | इसकी ही अम्बिकाकृत जरा कहते हैं, इसमें बहुधा मनुष्य असावधानी से मृतक शेजाते इसके निमित्त हान व्यवश्य करना चाहिये और इन्ही रोगोंकी शान्तिके निमित्त चातुर्मासके सन्तर्गत यह भी हवन है। इस समय भी शरकाल में नवदुर्गाओं में जो ह होता है वह काकाही विधान है परन्तु घर घर होनेसे बहुत उपयार हो सकता है, इस मंत्र में वडा गूढ तत्व है बुद्धिमान इसमें से बहुत कुछ जॉनसकते है, इस कारण दिग्दर्श ममात्र लिखा है ॥ २ ॥ अवरुद्ध संदीमुख्यम॑दे॒र्वव्यम्बकम् ॥ वर्था नोधस्य सुस्करद्यर्थानहश्श्रेयसुस्करद्यथानो व्यवसाययत् ॥ ३ ॥ ॐ अवरुद्ध गित्यस्य वन्धुऋषिः | विराट् पंकिछन्द | रुद्रो देव- ता । जपे विनियोगः ॥ ३॥ भाष्यम् - ( रुद्रम् - ञव) असौ रुद् इति गनसा तम् व्यवगत्य (नदीमहि ) त्वद तुमहादनं मक्षयेम | तथा ( त्र्यम्बकम् ) त्रीणि अम्धकानि नेत्राणि यस्य ताई देवम् ( यब ) व्यवनत्यादीमही त्यनुवर्तते । यद्वऽन्यदेवताभ्यः पृथकृत्य रुद्रमही महि धामो भोजयामः ( यथा ) येन प्रकारेण ( नः ) अस्मान् ( वस्यसः ) बस्तृतरान वसनशीलान् ( करतू) असौ कुर्यात् (यथा ) येन प्रकारेण (नः ) अस्मान (यस ७