पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/१०३

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

(९४) रुद्राष्टाध्यायी [ मो- मुखयन्तु ( ते ) रुद्रा: (यम) सर्वेदिक्षु नमस्करोमत्यर्थः । ( नमः ) नमोऽस्तु ( ते ) रुद्राः (नः ) अस्मान ( व्यवन्तु ) रक्षन्तु ( ते ) ( नः ) अस्मान् (मृडपन्छ) पुरुषम् ( द्विष्मः ) द्वेषं कुर्मः ( च ) ( यः ) पुरुषः (नः ) अस्मान् ( देटि ) डेप करोति ( तम् ) पुरुषम् ( एपाम् ) पूर्वोत्तानां रुद्राणाम् ( जम्भे) दंष्ट्राकराले मुख ( दध्मः ) स्थापयामः । अस्महिषमस्मद्देष्यं च नरं पूर्वोक्ता रुद्रा भक्षवन्द्र व्यस्मा- चावन्तु चेत्यर्थः ॥ ६४ ॥ भाषार्थ- जो रुद्र झुलोक में विद्यमान हैं, जिन रुद्रोंके वृष्टि ही वाण है उन स्ट्रोंके निमित्त नमस्कार है, उन रुद्रोंके निमित्त पूर्वदिशाम वृश अंगुली होकरके अर्थात हाथ जोडकर, दक्षिण में दशअगुली होकर, पश्चिम में दाअगुली होकर, उत्तरमे दुशअगुली होकर, उनमें दशमगुली अर्थात कर जोडकर प्रार्थना करताहू, उनके निमित्त नमस्कार हो, वे हमारी रक्षा करें, वे हमको सुखी करे, षे रुद्र जिससे हम द्वेप करते हैं और जो हमसे द्वेष करता है उनको इन रुद्रोंके गढ़ में स्थापन करते है || ६४ ॥ भाषार्थं - जो देवता द्युलोकों है तिनके चाण वाष्ट है अर्यात वृटिद्वारा सृजन पालन और अतिवृष्टि से सहार किया करते हैं, सर्वादशाओं उनको हाथ जोडकरप्रणाम करते हैं || ६४ ॥ नमोस्तुरुदेन्फ्युषिन्तरिक्षे येषाँशतुऽइष- वह ॥ तेव्स्योदश॒प्माचीशंदक्षिणादर्शप्प्रु- तीखी शादीचदशो॥ तेयोनमोऽ अस्तुतेवन्तु॒तेनमडयन्तु॒तेषन्हिो योद्वेष्टित मे॑षाअम्भैदध्मः ॥ ६५ ।। ॐ नमोस्त्वित्यस्य परमेष्ठी प्रजापतिऋषिः । धृतिश्छन्दः । रुद्रो देवता | वि०पू० ॥ ६५ ॥ माध्यम - ( रुद्रेभ्यः ) रुद्रेभ्यः ( नमोऽस्तु ) नमस्कारोऽस्तु (ये ) ( अन्तरिक्षे ) अन्तारक्षे वर्तन्ते ( येषाम् ) रुद्राणाम् (वातः ) वायुः ( इषवः ) आयुधस्थानीयः कुर्वातनानं विनाश्य वातरोगं चोत्पाद्य जनान् प्रान्ति तेभ्योऽन्तरिक्षस्थेभ्यो रुद्रेभ्यो नमः । शेषं पूर्ववत् ॥ ६५ ॥ भाषार्थ-छन रुद्रके निमित्त नमस्कार हो, जो रुद्र अन्तरिक्ष में विद्यमान हैं जिनके नाण पवन है अर्थात् पवनद्वारा जो सृजन, पालन और आंधी आदिसे सहार करते हैं उनके निमित्त नमस्कार है, शेष पूर्ववत् ॥ ६५ ||