पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२६८

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ताजिकनीलकण्ठी । अथ एकाशस्थानप्रश्नः । नृपतेर्गौरवलाभाशादिममस्यान्नवेतिपृच्छायाम् ॥ आयेशलग्नपत्योः स्नेहदृशा अशिलेद्रुतंभवति ॥ १ ॥ राजासे गौरव तथा धनादिलाभ मेरे होंगे वा नहीं ऐसे प्रश्नमें लाभेश लग्नेशकी स्नेहदृष्टिसे इत्थशाल हो तो शीघ्र लाभ होगा ॥ १ ॥ रह चाबहु दिवस: केंद्रे चायेशचंद्रकंबूले ॥ वाच्या पूर्णैवाशाचरस्थिरद्विस्वभावगेस्वनामफलम् ॥ २ ॥ जो उनके परस्पर शत्रुदृष्टि से इत्थशाल हो तो बहुत दिनोंमें लाभ होगा जो लग्नेश लाभेशका इत्थशाल केन्द्र वा लाभंस्थानमें चन्द्रमाके कंबूल सहि - त हो तो आशा पूर्ण होगी कहना, परंतु वह जैसी राशिमें हों वैसा राशि - नामसदृश फलभी देते हैं जैसे चरखें चर स्थिरमें स्थिर इत्यादि ॥ २ ॥ लाभेशे रहते भृत्वाशाशुप्रणाशमुपयाति ॥ ●रायुक्तेशुभयुज्यधिकारवशेनलघ्व्याशा ॥ ३ ॥ ( २६० ) · जो लाभेश अस्त वा पापपीडित हो तो आशा पूर्ण होकर फिर नष्ट होजावे. पापरहित शुभयुक्त हो तो अधिकारके सदृश लघु वा बृहत् आशापूर्ति कहनी ॥ ३ ॥ मित्रेणसह प्रीतिर्भवितालग्नेश्वरायपत्योश्च || प्रियदृष्ट्यामुथशिलतःप्रीतिर्वान्योन्यगृहयानात् ॥ ४ ॥ मित्रसे प्रीति होगी वा नहीं ऐसे प्रश्नमें लग्नेश लाभेशकी मित्र दृष्टि सुन् शिल हो अथवा लग्नेश लाभमें लाभेश लग्नमें हों तो भीति बढेगी ॥४॥ केंद्रस्थितयोरनयोर्मैत्रीकिलपूर्वजातैव ॥ पणफरगतौपुरस्तादापोक्किमतोमहाश्रीतिः ॥ ५ ॥ ( लाभेश लग्नेश केन्द्रमें हों तो मैत्री उनकी पहिलेहीसे होरही है, जो पुणफर २ | ५ | ८ | ११ में हों तो आगे होगी आपोक्किम ३।६।९।१२ में हों तो प्रीति बहुत बढेगी ॥ ५ ॥