पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२६५

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भाषाटीकासमेता । (२५७ ) के लिये बलवान् चंद्रमा और बलवान् शुभग्रह करके लन तथा सप्तमभाव देखा जाय और उक्त स्थानोंपर पापग्रह की युति दृष्टि न हो तो राजाके हृदय में स्नेह तथा कृपा रहे, यही योग विपरीतभी है कि, शुओंके स्थानमें पाप हों तो विपरीत फल कहना ॥ १७ ॥ अन्यस्वामिप्रश्नः । केंद्रयदीत्थशालंकुरुतेविलयपः ॥ षष्ठेश्वरेणव्ययपेन प्रष्टुस्तदान्यःप्रभुरर्थदः स्यादतःप्रतीपंनभवेत्परःप्रभुः ॥ १८ ॥ षष्ठेशसे वा व्ययेशसे जो केन्द्र में इत्थशाल लग्नेश करे तो प्रष्टाको और स्वाश्री धन देनेवाला होगा, विपरीत में अन्य प्रभु न होवे ॥ १८ ॥ लग्नेश्वरेस्वर्क्षगतेस्वतुंगकेंद्रस्थितेशीतकरेत्थशाले ॥ शुभ हैदृष्ट तेबलान्वितेप्रष्टुर्नजस्वाम्यमितार्थलाभः ॥ १९ ॥ लग्नेश अपनी राशि वा उच्च में केन्द्रस्थित होकर चन्द्रमासे इत्थशाली हो तथा शुभ ग्रहोंसे युक्त दृष्ट और बलवान् हो तो प्रष्टाको अपनेही स्वामी से अगणित धन मिले ॥ १९ ॥ जायेश्वरेस्वोच्चनिजर्क्षसंस्थेकेंद्रस्थितेशीतकरेत्थशालगे ॥ भगर्दृष्टयुतेबलोत्कटैः प्रष्टुस्तदान्यप्रभुरर्थदोभवेत् ॥ २० ॥ सप्तमेश अपनी राशि वा उच्चका केन्द्रगत चन्द्रमासे इत्थशाली हो तथा बलवान् शुभग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो प्रष्टाको अन्य स्वामी धनदेवे ॥२०॥ इदंगृहंवाशुभमन्यदालयंस्थानंत्विदवाशुभमन्यदेवमे || समात्र भद्रंगमनात्तु तत्रवापृष्ठोदयेत्थंविधिनाविभृश्य ॥ २१ ॥ प्रष्टा पूँछे कि, मुझको यह घर शुभहोगा वा अन्य, तथा यह स्थान शुभ वा अन्य, और हमको यहां शुभ है या गमनमें वहां शुभ होगा इतने प्रश्नों में इतने ही भावोंसे कार्येश जानके इत्थशाल इसराफ आदि योगोंसे विचार करना २१ १७ अथ स्व प्रश्नः । लग्नेकनृपतिवह्निशस्त्रपश्यंतिलोहितम् ॥ वेतंपुष्पंसितंवस्त्रं गंध नारींचशीतगौ ॥ २२ ॥