पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२३६

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

( २२८ ) ताजिकनीलकण्ठी । प्रश्नके पहिले ७ वा ४ दिनमें सूर्य्य चन्द्रमा शुभग्रहसे युक्त दृष्ट हों तो रोगीको शुभ होगा ॥ १२ ॥ "दोयमथनवेति प्रश्नेलग्नेश्वरोथचंद्रोवा ॥ षष्ठेश थशिलीस्यादस्तमितोवातदामंदः ॥ १३ ॥ यह रोगी होगावा नहीं ऐसे प्रश्नमें लग्नेश वा चन्द्रमा षष्ठेशसे मुथशिली हों वा अस्तंगत हों तो रोगी होगा ॥ १३ ॥ स्वामिभृत्यचतुष्पदप्रश्ने । ईशोन्यो ममभवितानवेतिलग्नेश्वरस्ययदिकेन्द्रे || नोभवति थशिलंषष्ठांत्यपतिभ्यां तदानान्यः ॥ १४ ॥ मेरा और स्वामी होगा या नहीं अर्थात् और जगे नोकरी लगेगी वा नहीं, ऐसे प्रश्नमें जो लग्नेशका केन्द्रमें षष्ठेश तथा व्ययेशसे मुथशिल न हो • तो और स्वामी नहीं होगा ॥ १४ ॥ वक्रीवान्येनसमंलग्नपतिः सहजनवमसंस्थेन ॥ रुते यदीत्थशालं तदान्यनाथो भवेत्प्रष्टुः ॥ १५ ॥ जो लग्नेश वक्री और किसी तृतीयनवमस्थानस्थ ग्रहसे इत्थशाली हो तो और स्वामी होगा ॥ १५ ॥ ल पतौकेन्द्रस्थे रिपुदृष्ट्याक्रूरवीक्षितेसुखपे ॥ रविरश्मिगतेथभवेद्यावज्जीवनचान्यपतिः ॥ १६ ॥ लग्नेश केन्द्रमें हो तथा चतुर्थेश पर पापग्रहकी शत्रुदृष्टि हो एवं लग्नेश अस्त हो तो जीवितपर्यंत औरपति नहीं होगा ॥ १६ ॥ अयमीशोभद्रोमे पृच्छायां लग्नपस्यकंबूले || स्वामी स एव भव्योद्यूनेशस्यचशुभोन्येशः ॥ १७ ॥ यही स्वामी अच्छा होगा वा अन्य ऐसे प्रश्नमें लग्नेश शुभ ग्रहसे कंबू- ली हो तो उसी स्वामीसे शुभ होगा, जो सप्तमेशका कम्बूल शुभ ग्रहसे हो. तौ अन्यस्वामीसे शुभ होगा ॥ १७ ॥ गृहभूमिस्थानानां चलनप्रने पुरोक्त एवविधिः ॥ सम्यग्विचायवाच्यं भमशुभं पृच् तःस्वधिया ॥ १८ ॥