पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२०८

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(२००) ताजिकनीलकण्ठी | वाटिकाखलकक्षेत्रमहौषधिनिधीनपि ॥ विवरादिप्रवेशंच पश्येत्पातालतोबुधः ॥ ४ ॥ बावडी, खरिहान खेती औषधि अन्नादि निधि ( उत्तमवस्तु ) भूमिगत द्रव्यादि और रंध्र कंदरा सुरंग आदिकों में प्रवेश, इतने चतुर्थ भाव से देखने ॥४॥ गर्भापत्यविनेयानां मन्त्रसन्धानयोरपि ॥ विद्या बुद्धिप्रबंधानां सुतस्थाने विनिर्णयः ॥ ५ ॥ गर्भधारण, सन्तान, नम्रता, बुद्धि, मन्त्रका सन्धान, मसोदा आदि विद्या तथा बुद्धिका प्रबन्ध इत्यादि पंचम भावसे विचारना ॥ ५ ॥ अनु० - चौरभीरिपुसंग्रामखरोष्टक्रूरकर्मणाम् || मातुलातंकभृत्यानां रिपुस्थानाद्विनिर्णयः ॥ ६ ॥ चौरभीति, शत्रु संग्राम, और खर, ऊंट तथा क्रूरकर्म, मातुलपक्ष, रोग, चाकर, इनका विचार छठे स्थानसे करना ॥ ६ ॥ वाणिज्यं व्यवहारंच विवादंचसमंपरैः ॥ u गमागमकलत्राणि पश्येत्प्राज्ञः कलत्रतः ॥ ७ ॥ व्यापार वणिग्वृत्ति अन्य के साथ विवाद वा संधि तथा गमन आगमन स्त्री इतने विचार सप्तमभावसे करने ॥ ७ ॥ नछुत्तारेध्ववैषम्ये दुर्गे चश संकटे ॥ नष्टेदुष्टेरणेव्याघौछिद्रे छिद्रंनिरीक्षयेत् ॥ ८ ॥ 1 नयादितारण, मार्गविचार, विषमस्थान, किला, शस्त्रसंकट आदि कठि- नाई, तथा नष्टता, दुष्टता, रणरोग, छिद्रता, गृहच्छिद्र वा विवरादि इतने विचार अष्टम भावसे देखना ॥ ८ ॥ ● वापीकूपतडागादि प्रपादेवगृहाणिच || दीक्षांयात्रांमठंघ मै धर्मान्निचित्यकर्त्तियेत् ॥ ९ ॥ - बावडी, कूप, तालाव आदि जलाशय, तथा प्रपा ( पाउ ) देवमंदिर, उप- देश, यात्रा, मठ, और धर्मकार्ग्य नवमस्थानसे विचारके कहना ॥ ९ ॥ 7