पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासमेता । अनुष्टु० - मृत्यंशे मृत्युगे सौम्यैर्युग्दृष्टेमरणरणे ॥ मिश्रमिश्रंखलैः सौख्यंवर्षलग्नानुसारतः ॥ २५ ॥ अष्टमभाव वा अष्टमभावनवांशक में जो शुभ ग्रह हों वा देखें तो संग्राम में मरण देते हैं जो शुभग्रह तथा पापग्रहोंसेभी युक्त वा दृष्ट हों तो युद्धमें जय वा नीरोगता होवे जो केवल पापग्रह अष्टमभाव तथा अष्टमभावनवांशमें हों तो युद्धभी न होबे मरणभी न होबे अर्थात् नैरुज्य रहे ॥ २५ ॥ अनुष्ट ० - द्विदशेखलाहानिव्ययेसौम्बाः शुभंव्ययम् || कर्त्तरीपापजारोगंकरोतिशुभजाशुभम् ॥ २६ ॥ दूसरे बारहवें स्थान में पापग्रह हानि और धन स्थानमें शुभ ग्रह धनलाभ बारहवें शुभव्यय करते हैं यदि लग्न में पापग्रहोंकी कर्त्तरी हो तो रोगादि दुःख देती है शुभ ग्रहोंकी कर्त्तरी हो तो शुभ फल देतीहै ॥ २६ ॥ अनुष्टु० - लग्नेष्टमेवाक्षीणेंदुर्मृत्युदः पापढग्युतः ॥ रोगोवाग्रहणवापिरिपुतःशस्त्रभीरपि ॥ २७ ॥ लग्नसे अष्टम स्थानमें क्षीण चन्द्रमा पापयुक्त वा दृष्ट हो तो मृत्यु देता है अथवा रोग वा बंधन और शत्रुसे शस्त्रका भय होवे ॥ २७ ॥ उपजा० - चंद्रेस भौमेनिधनारिसंस्थेनृणां भयंशस्त्रकृतंपशोर्वा ॥ पापैःसुखस्थैःपतनंगजाश्वयानात्तनौस्याद्वहुलाचंपीडा ॥२८॥ चंद्रमा मंगल सहित छठा वा आठवां हो तो मनुष्योंको शस्त्रसे वा (पशु) व्याघ्रादिसे भय होवे जो पापग्रह चतुर्थस्थानमें हों तो हाथी घोडा पालकी आदि वाहनसे पतन होवे तथा शरीरमें बहुतसी पीडाभी होवे ॥ २८ ॥ अनुष्टु० - शुभाधूनेविजयदाद्यूतादथसुखावहाः || नवमेधर्म भाग्यार्थराजगौरवकीर्त्तयः ॥ २९ ॥ (१८७) शुभग्रह सप्तम स्थानमें जय करते हैं जुवांमें धनलाभ तथा सुखभी करते हैं नवम स्थानमें शुभग्रह ऐश्वर्य धन राजासे गुरुता और कीर्ति बढ़ाते हैं ॥ २९ ॥