पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९४

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( ३८६ ) ताजिकनीलकण्ठी | ॥ इंद्रव० - यदंशकः सोम्ययुतेक्षितोवास्त्रिग्वेक्षणाद्भावजसौख्यकृत्सः दुःखप्रदः प्रोक्तवदन्यथात्वेभावेसर्वेष्वियमेवरीतिः ॥ २१ ॥ यहां नवांशविचार सभी भावोंमें तुल्य है जिस भाव में जो भाव स्पटका नवांश है वह शुभग्रह वा मित्रग्रहों से युक्त वा दृष्ट तथा चंद्रमासे भी मित्र- दृष्टि से देखाजावे तो उक्त भावसंबंधि सुख होवे यदि वह पापग्रहों से युक्त वा दृष्ट तथा चंद्रमासे शत्रुदृष्टि करके देखा जावे तो उक्तभावसंबंधि क्लेश देता है यही रीति सभी भावोंकी है ॥ २१ ॥ अनु० - षष्टांशकः सौम्ययुतो रोगदः पापयुक्छुभः ॥ व्ययांश शुभयुम्दृष्टे सद्ययः पापतस्त्वसत् ॥ २२ ॥ किसी भावों में विचार औरतरहमी है जैसे छठे भावका नवांश शुभ- ग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो रोग करता है पापग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो शुभ अर्थात् नीरोगता देता है ऐसेही बारहवें भावका अंश शुभ युक्त दृष्ट हो तो ( सद्व्ययः ) देवता ब्राह्मण आदिके कार्ग्य में व्यय और पापयुक्त दृष्टसे चोरी दंड आदिसे व्यय होवे ॥ २२ ॥ अनुष्टु० - जायांशः सौम्ययुग्दृष्टः स्वस्त्रीसौख्य विलासकृत् ॥ पाप हैः कलिर्दुःखं पापांतःस्थे मृतिं वदेत् ॥ २३ ॥ सप्तम भावांश शुभग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो अपनी स्वीसे विलासादि सौख्य करता है पापग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो तो स्त्रियोंसे कलह, स्त्रीसंबंधी दुःख होवे. जो वह नवांश पापोंके बीच हो तो स्त्रीमरण होवे, जो पाप ग्रह सप्तम भावमें होवें तो अन्यत्वीसंगम होवे शुभग्रहों से बहुत स्त्रीसौख्य होवे ॥ २३ ॥ अनुष्टु० - शुभमध्यस्थितेत्र्यंशे बहुलंकामिनीसुखम् || स्वस्या रतिर्गुर। वन्यखगेन्यासुरतिं वदेत् ॥ २४ ॥ सप्तम भावांश जो शुभग्रहों के बीच हो तो कामिनीसुख बहुत होवे. वृहस्पति से युक्त वा दृष्ट हो तो अपनी स्वीसे, अन्य शुभग्रहोंसे हो तो अन्यस्त्रियों से रति होवे ॥ २४ ॥ ·