पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९०

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( १८२) ताजिकनीलकण्ठी । शार्दूलवि० - तौचेच्छन्नुहशा मिथञ्चशशिना दृष्टौ मनोदुःखदौ रोगाधिक्यकरौच कश्चिदनयोनीचेस्तगोवायदि ॥ कष्टात्सौं- ख्यमिहद्वयं यदिएननचास्तगंस्यान्मृतिः सूत्यन्दोद्भव रेष्टतो स्मृतिसमंस्यादन्यथेत्यूचिरे ॥ ८ ॥ जो वही लांशेश और लग्नेश्वरांशेश परस्पर शत्रुदृष्टि से देखते होंवा चंद्र- माभी शत्रुदृष्टि से देखे तो मानसी दुःख देते हैं जो लग्नेश और लग्नेश्वरांशेश मेंसे कोई नीच वा अस्तंगत हो तो वडा कष्ट भोगकर सुख पावें जो लग्नांश- नाथ लग्नेश्वरांशनाथ नीच एवं अस्तंगत हों और चंद्रमा शत्रुदृष्टि से देखे तो मृत्यु देते हैं, परन्तु इसी महीनेमें जन्म तथा वर्षकाभी अरिष्ट हो तो मृत्यु होतीहै अन्यथा मृत्युतुल्यं कष्ट होता है जो जन्मका अरिजिस महीने में हो वर्षका न हो तो मासपूर्वार्द्ध में मृत्युतुल्य कष्ट और वर्षका अरिष्ट हो जन्मका उस महीनेमें न हो तो मासोतरार्द्धमें उक्त अरिष्ट मिलता है यह कोई आचार्य कहते हैं ॥ ८ ॥ शार्दूलवि० - भावांशाधिपतिः स्वभानपनवशिशेनमैत्रीदृशा दृष्टोवासहितः शशीचयदितौ मैत्रीदृशालोकते ॥ तद्भावो- त्थसुखंविलोममथतद्वयत्यासतः कीर्तितं नीचास्तादिफलं चलनवदिदेविद्वद्भिरूह्यंधिया ॥ ९ ॥ ऐसेही संपूर्ण भावोंका विचार है कि जिस भावका नवांशस्वामी तथा भावनाथनवांशस्वामी परस्पर मित्रदृष्टि से देखें तथा चंद्रमाभी इन्हें मित्र- दृष्टि से देखे तो इस महीने में उस भावसंबंधि शुभफल मिलता है जो उक्त ग्रह परस्पर शत्रुदृष्टि से देखें अथवा युक्त हों तथा चंद्रमाभी इन्हें शत्रुदृष्टि से देखे तो तद्भानसंबंधि कष्टफल अवश्य मिलता है ऐसेही नीच वा अस्तंगत एक वा दोनो हों तोभी कष्टफल मिलता है विद्वानोंने लग्नके सदृश सबही भावों में ऐसा विचार करना ॥ ९ ॥ इंद्रव० -लग्गेशमासशसमेश्वरांशनाथायदंशाधिपमित्रदृष्टया || दृष्टायुतावाशशिनाचतद्वद्भावोत्थसौख्यायनचेदनि म् ॥१०॥