पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१८९

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भाषाटीकासमेता । अनु० - पश्यन्मासपतिर्ज्ञेयस्ततोवाच्यं भा भम् || अपरेमासल शंमासांधिपतिमूचिरे ॥ ५ ॥ ( १८१ ) जैसे वर्ष प्रवेशमें वर्षेशके लिये पंचाधिकारी हैं तैसेही मासप्रवेशमें मा- सेशके लिये पडधिकारी ये हैं कि प्रथम मासप्रवेशके तत्कालीन ग्रह स्पष्ट करके प्रथम मासलमेश १ उससे उपरांत माससंख्या ढाई २।३० अंशसे गुना- कर वर्षकी मुंथा स्पष्ट में योग करनेसे मासकी मुंथा होती है इसका स्वामी २ • जन्मराशिस्वामी ३ त्रिराशीश “त्रिराशिपाः सूर्य्यसितार्किशुकाः” इत्यादिसे पूर्वोत्तही ४ दिनमें सूर्य्य राशिस्वामी रात्रिमें चंद्रराशिस्वामी ५ वर्षप्रवे- श लमस्वामी ६ ये षडधिकारी होते हैं इन छहोंमेंसे जो बलाधिक और लग्नको देखता हो वह मासाधिपति होता है. कोई कोई आचार्य मासप्र- वेश लग्नेशकोही मासेश मानते हैं उनके मतसे पडधिकारियोंकाभी प्रयोज- न नहीं है स्वामीका निर्णय पूर्ववतही है ॥ ३ ॥ ४ ॥ ५ ॥ . O अनुष्टु -- दिनेशं दिनलग्नेशं तथाप्रोचुर्विचक्षणाः ॥ मासघस्त्रेशयोर्वाच्यं फलं वर्षेशवदुधैः ॥ ६ ॥ " दिनेश दिनप्रवेशके लग्नेशकोही बुद्धिमान् कहते हैं. फल इसका वर्षे शके समान वलावल विचारसे शुभाशुभ बुद्धिमानोंने कहना ॥ ६ ॥ शार्दूलवि० - लग्नांशाधिपतिर्विलग्नपनवांशशेनमैत्रीदृशादृष्टो. व सहितः शशीच यदितौ मैत्रीदृशालोकते || तस्मिन्मासितनौ- सुखं बहुविधं नैरुज्यमित्थंफलंतावद्यावाद मेस्युरित्थमथता संचार्य्यवाच्यंफलम् ॥ ७ ॥ मासप्रवेश लम्रके नवांशका स्वामी लग्नेशसे वा उसके स्थित नवांश- स्वामीसे मित्रदृष्टि हो वा दोनों एक साथ हों तथा चंद्रमा उन दोनोंको मिनदृष्टि से देखे तो उस महीने में मासप्रवेशवालेके शरीरमें बहुत प्रकारके सुख और नीरोगता जबलौं यह मासप्रवेश है तबलौं रहे ऐसेही गणितव- शसे ग्रहोंका बलाबल दृष्टियोग विचारके फल कहना ॥ ७ ॥