पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१८०

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ताजिकनीलकण्ठी । कांत्यर्थलाभोपचयंसुखानिराज्येसुत तेंरि रोगनाशम् ॥ २९ ॥ पूर्णबली बृहस्पतिकी दशा राजा मित्र और गुरुजनोंसे मान देती है तथा कांति बढती है धनलाभ बहुत राज्यका सुख पुत्रप्राप्ति शत्रु और रोगका नाश होता है २९ ॥ उपजा० - गुरोर्दशांमध्यबलस्यधम्मैम तिसखित्वं नृपमंत्रिवर्गैः ॥ तनोतिमानार्थसुखाभिलाभंसिद्धिंसदुत्साह बलातिरेकाम् ॥ ३० ॥ मध्यबली बृहस्पतिकी दशा में राजासे मित्रता पुत्र स्त्री सुख और मित्र व धर्मके लाभ होते हैं ॥ ३० ॥ (१७२) दशागुरोरल्पबलस्यदत्तेरोगंदारिद्रत्वमथारिभीतिम् || कर्णामयंधर्मधनप्रणाशंवैराग्यमर्थच णंच किंचित् ॥ ३१ ॥ अल्पबली बृहस्पतिकी, दशा रोग दारेद्रत्व और शत्रुभय देती है तथा कानोंमें रोग धर्म तथा धनका नाश होताहै परंच चित्तमें वैराग्य और थोडा धनागम और स्वल्प गुणभी देती है ॥ ३१ ॥ उपजा० - दशागुरोर्नष्टबलस्य सांदद तिदुःखानि रुजंकफार्तिम् || कलत्र त्रस्वजनादिमीतिधर्मार्थनाशंतनपीडनंच ॥ ३२ ॥ अल्पबली बृहस्पतिकी दशा पुरुषोंको अनेक दुःख एवं रोग कफवि- कारसे कष्ट और स्त्री पुत्र एवं अपने मनुष्यादिकोंको भय धर्म और धनका नाश तथा शरीरपीडा देती है ॥ ३२ ॥ अनुष्टु० - पडष्टरिष्फेतरगोगुरुर्नियोर्द्धसत्फलः ॥ मध्योहीनःशुभामध्यः शुभोत्यंतशुभावहः ॥ ३३ ॥ दशापति बृहस्पति ६।८।१२ भावोंसे अन्य स्थानों में हो तो नष्टबली भी शुभफल आधा देता है और हीनबली मध्यफल और मध्यवली शुभ फल देता है और पूर्णबली अत्यंत शुभफल देता है ६ |८|१२ स्थानों में उत्तमबली भी शुभफल पूर्ण नहीं देता ॥ ३३ ॥ उपजी०-दशाभृगोः पूर्णबलस्यसौख्यंत्रग्गंध वेश्मांबरकामिनीभ्यः ॥ हयादिलाभः सुतकीर्तितोपानरुज्यगांधर्वरतिः पदाप्तिः ॥ ३४ ॥ 'पर्णचली शुक्रकी दशा, माला सुगंधि वस्तु गृह व बीजनोंसे सुख दे-