पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१७२

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१६४) ताजिकनीलकण्ठी ।. ग्रह बु ल सू शु वृ / मं श च | योग २९८३ ९९०३३ ७२५८० ३६० दशापाक दिन २२४४ १९४२४६६२६३१ ० घटी ६२८३४१७४३४४/४६२२ ० पला सू सू सू सू सू सू सू सू सू | सूर्यः स्पष्ट १३ ४७ ७१०११११० ३ ८ २ १२/१२१६२३१९ ९ ३६९९४३ ३४५३२३८ ५ ३६ राश्यादि ९७३/३१५२२५४९३५५७ · उपजा० -शद्धांशसाम्येवलिनोदशाद्यावलस्यसाम्येल्पगतेस्तपूर्वा || साम्येविलग्नस्यखगेनचिंत्या वलादिकालमपतेर्विचित्या ॥ ४ ॥ दशाक्रमहीनांश प्रथम उससे अधिक उसके आगे लिखना कहाहै, यदि अंशादि दो आदियोंके तुल्य ही हों तो उन्मेंसे जो अधिक बलीहै वह प्रथम दशेश होगा, यहां 'शुद्धांशसाम्ये' यह पाठ अनुचितहै किंतु 'हीनांशसाम्ये' यह पाठ उचित है; जब बलभी समान हो तो मन्द गतिवाला प्रथम शीघ्र गतिवा- ला उपरांत लिखना, यह और लग्नके अंशादि साम्य होनेपर लग्नेशसे बलादि- कका विचार करके जिसकी प्रथम हो उसकी दशा प्रथम लिखनी, यही क्रम है || ४ || अन्तदशाके लिये ग्रन्थान्तरका श्लोक है कि, "शुद्धां- शयोगेन भजेत्स्वकीयदशादिनायं स्वलवैर्निहन्यात् || शुद्धांशकांशानिजतः क्रमेण चांतर्दशाथो विदशापि चैव ॥ १ ॥” अर्थात् जिस ग्रहकी अन्तर्दशा करनी है उसके शुद्धांशको पहिले उसी के शुद्धांरासे गुणना फिर जिन २ की अन्तर्दशा लानी हैं उन्हउन्हके शुद्धांश से गुणना तथा सर्वाधिकांशसे भाग लेना लब्धभाजक जात्यनुसार अन्तरदशा- मान होता है अथवा ( प्रकारांतर ) उसके मासादिसे जिसकी दशामें अन्त.. देशा करनी हो उसके मासादि गुन देने और हीनांशयोग जो सर्वाधिकाश है उससे भागदेना, लब्धिदिनादि अन्तर्दशा होती है, ऐसेही प्रत्येक ग्रहमें सभी की .