पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१६९

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भाषाटीकासमेता । (१६१ ) और उत्तराईमें अशुभ फल देते हैं जो जन्ममें निर्बल और वर्ष में बलवान हैं वे वर्षके पूर्वार्द्ध में अशुभ उत्तरार्द्ध में शुभ फल देते हैं दोनों कालमें (तुल्प ) बली हों तो समान फल देते हैं ॥ ९ ॥ इति श्रीमही • व्ययभावफलाध्यायः ॥ १२ ॥ शाई:-श्रीगर्गान्वयभूषणं गणितविञ्चितामणिस्तत्सुतोनंतोऽनं तमतिर्व्यधात्खलमतध्वस्त्यैज पद्धतिम् ॥ तत्सूनुःखलुनी- लकंठवि धोविद्विचि वानु यासन्तुष्टचैन्यदधाद्विवेचनमिदं 'भावे सत्ताजिकात् ॥ १० ॥ इति ताजिकनीलकंठयां द्वादशभावविचारः | यह श्लोक अध्यायका है इसका अर्थ पूर्ववतही है इतना विशेष है कि अच्छे ताजिकग्रन्थोंके मतसे भावफलविवेचना इस अध्यायमें रक्खी है ॥ १०॥ इति श्रीमहीधरकृतायां नीलकंठीभाषाटीकायां भावफलप्रकरणं पंचमम् ॥५॥ अथ वर्षदशाक्रमविचारः । उपजा० - स्पष्टान्सल न्खचरान्विधायराशीन्विनात्यल्पलवंतुपूर्वम् || निवेश्यतस्मादधिकाधिकांशक्रमादयंस्यात्तुदशाक्रमोन्दे ॥ १ ॥ पात्यांशी दशाका क्रम कहते हैं. प्रथम लमसहित सभी ग्रहोंको स्पष्ट करके राशियोंको छोड देना अंशादि दशाक्रमसे स्थापन करना उसका क्रम यह है कि सबसे अल्प अंशवाला यह पाहले और उससे अधिकांश उससे आगे फिर अधिक अधिक अंशवाले का क्रमसे आगे आगे स्थापन करते जाना, अन्त में सबसे अधिकांश ग्रह आवेगा,यह दशाका स्थापनक्रम है उदाहरण चक्र है ॥ १ ॥ ४ स्पष्टाः र चं मं बु | बृ शु श / ल ३९ ८४३४ ९२८ १९ २१९१६२१ ८ २३६१६५७ १८२३४४५७ ५७ १९७३१८२८/३७ २६३ २ १५७३२४/७५८१३७ ७ ३१३०/५४/३६/३२५२/० ० ११ अंशादयः राचं मं| वुं बृ शु श ल ९/२८१९/२१९/१६२१ ८ ३६ १६५७ १८२३४४५७ ५७ ५७३१, ८ / २८३७/२६ ३/२