पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१६८

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( १६० ) ताजिकनीलकण्ठी | होवे, तथा वर्षेश बुध स्वराशि ३ | ६ उच्चका दशम हो तो वैद्यक ज्योतिष और शिल्प ( कारीगरी ) से लाभ हो ॥ ४ ॥ अनु· · - मंदे दपेगतब लेनैराश्यं दौस्स्थ्यमादिशेत् || सूर्येन्देशेशशिस्थानेम॑देब्दजनु॒पोहि॑ते ॥ ५ ॥ वर्षेश शनि निर्बल पापाक्रांत हो तो नैराश्य ( प्राप्तिका ) नाश होवे तथा एकजगह स्थिति न होवे जो वर्षेश सूर्य्य हो और जन्मके चन्द्रमाकी राशिका वर्ष में शनि हो तथा जन्मकाल वर्षकालमें पापात्रांत निर्बल शनि हो तो संपूर्ण शुभ कर्मों में विकलता ( असिद्धि ) होवे . और ऐसाही शनि वक्र वा अस्तंगत हो तो उक्तफलही होता है ॥ ५ ॥ अनुष्ट ० - सर्वकर्मसुवैकल्यंवक्रेस्तेचतथापुनः ॥ कर्मकर्मेशसह मनाथाः शनियुतेक्षिताः ॥ ६ ॥ इस श्लोक पूर्वार्द्धका अर्थ पूर्व ५ श्लोकोंमें लिखाहै उत्तरार्द्धका यह है. दशमस्थान तथा दशमेश और कर्मेश और कर्म सहमेश शनिसे युक्त वा दृष्ट हो तो ( कर्मवैकल्प ) कार्यहानि व्यर्थपरिश्रम होवे ॥ ६ ॥ अनुष्टु० - षडष्टव्ययगेब्देशे कर्मेशेचबलोज्झिते || सूतावन्देचनशुभंतत्राब्देमृतिपेतथा ॥ || 1 वर्षश छठा आठवाँ वा बारहवाँ होवे तथा जन्म और वर्षका दशम भावश निर्बल हो वर्षका अष्टमेशभी ६ | ८ | १२ स्थानमें हो तो इस वर्ष में शुभ फल नहीं होगा ॥ ७ ॥ अनुष्ट ० - यत्रभावेशुभफलोदुष्टोवाजन्मनिग्रहः ॥ वर्षेतद्भावगस्तादृक्तत्फलंयच्छतिध्रुवम् ॥ ८ ॥ जन्ममें जो ग्रह जिस भाव में शुभ वा अशुभ देनेवाला है वर्षमेंभी वह ग्रह उसी स्थान में हो तो निश्चय वही फल विशेषतासे देता है ॥ ८ ॥ इंद्रव॰ – येजन्मनिस्युःसबलाविवीर्यावर्षेसुखप्राक्चरमेत्वनिष्टम् दद्युर्विलोमं विपरीततायांतुल्यंफलंस्यादुभयत्रसाम्ये ॥ ९ ॥ जो ग्रह जन्ममें बलवान् और वर्षमें निर्बल है वह वर्षके पूर्वार्ध में शुभफल O ॥ ·