पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१६३

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( १५५ ) भाषाटीका समेता | अनुष्टु०-धूनेंथिहा धर्मइंदौ संबलेऽध्वा विदेशजः || वर्षेशोबलवान्पापायुतः केंद्रेधिकारवान् ॥ १० ॥ जो मुन्था सप्तम और चन्द्रमा बलवान होकर नवमस्थानमें हो तो विदेशसंबंधी मार्ग चलना होवे और वर्षेश बलवान् किसी पापसे युक्त न होके केंद्र में हो तो परदेशमें अधिकार मिलनेसे गमन होवे अथवा सेनापति होकर विदेशगमन करे ॥ १० ॥ अनुष्टु० - अधिकारेगतिः संख्येसेनापत्येपिवावदेत् ॥ एवंबुधेकुजे जीवसुतेर्कान्निर्गते पुनः ॥ ११ ॥ पूर्वार्द्ध लोकका अर्थ पूर्वश्लोकके अर्थ में लिखागया है, उत्तरार्द्धका प्रयो- जन यह है कि, बृहस्पतिके तरह बुध वा मंगल केंद्रवत्ति बलवान् अधिकार- - वान् और उदयी तथा बृहस्पति युक्त हो तो जय यश और सुख देनेवाली यात्रा होवे ॥ ११ ॥ अनुष्टु० - परसैन्योपरिगतिर्जयख्यातिसुखावहा || जीवान्नव सगे भौमेशुभायात्रानृणां भवेत् ॥ १२ ॥ इस श्लोकके पूर्वार्द्धका प्रयोजन सम्बन्धवशसे पूर्व ११ वें श्लोकके साथ लिखाहै उत्तरार्द्धसे यह है कि बृहस्पतिसे नवम मंगल बलवान् हो तो मनु- - प्योंकी शुभ यात्रा होवे ॥ १२ ॥ इति श्रीमहीधरकृतायां नीलकंठीभाषाटीकायां नवमभावफलाध्यायः ॥९॥ अथ दशमभावविचारः। अनुष्टु० -सबलेब्द पतौखस्थेराज्यार्थसुखकीर्त्तयः ॥ स्थानांतराप्तिरन्यस्मिन्केन्द्रेगृहसुखाप्तयः ॥ १ ॥ बलवान् वर्षेश दशम स्थानमें हो तो कुलानुमान राज्य तथा धन सुख और कीर्ति मिले जो अन्य केंद्र लग्न चतुर्थ सप्तम में हो तो गृहसम्बन्धी सुख मिले ॥ १ ॥ अनुष्टु० - इत्थंबलीरविर्भूस्थः पूर्वार्जितपदाप्तिकृत् || .एकादशेस्मिन्सख्यंस्यापामात्यगणोत्तमैः ॥ २ ॥